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मेरी जीवनगाथा
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गया, पर अकस्मात् माहुटका पानी बरस जाने से जनता को कष्ट सहना पड़ा। सागर विद्यालयका भी वार्षिक अधिवेशन हुआ था। वहाँसे सागर आ गये और यथावत् धर्म-साधन करने लगे।
खतौलीमें कुन्दकुन्द विद्यालय एक बार बरुआसागरसे खतौली गया। वहाँ पर श्रीमान भागीरथजी भी, जो मेरे परमहितैषी बन्धु एवं प्राणिमात्रकी मोक्षमार्गमें प्रवृति करानेवाले थे, मिल गये। यहीं पर श्रीदीपचन्द्रजी वर्णी भी थे। उनके साथ भी मेरा परम स्नेह था। हम तीनोंकी परस्पर घनिष्ठ मित्रता थी। एक दिन तीनों मित्र गंगाकी नहरपर भ्रमण के लिये गये। वहीं पर सामायिक करने के बाद यह विचार करने लगे कि यहाँ एक ऐसे विद्यालयकी स्थापना होनी चाहिए, जिससे इस प्रान्त में संस्कृत-विद्या का प्रचार हो सके । यद्यपि यहाँ पर भाषा के जाननेवाले बहुत हैं, जो कि स्वाध्यायके प्रेमी तथा तत्त्वचर्चा में निपुण हैं तथापि क्रमबद्ध अध्ययनके बिना ज्ञानका पूर्ण विकास नहीं हो पाता ।
यहाँ पं. धर्मदासजी, लाला किशोरीलालजी, लाला मंगतरामजी, लाला विश्वम्भरदासजी, लाला बाबूलालजी, लाला खिचौड़ीमल्लजी तथा श्रीमहादेवी आदि तत्त्वविद्याके अच्छे जानकार हैं। पं० धर्मदासजी तो बहुत ही सूक्ष्मबुद्धि हैं। आपको गोम्मटसारादि ग्रन्थों का अच्छा अभ्यास है। इनमें जो लाला किशोरीलालजी हैं वे बहुत ही विवेकी हैं। मैं जब खुरजा विद्यालयमें अध्ययन करता था तब आप भी वहाँ अध्ययन करने के लिये आये थे। एक दिन आपने यह प्रतिज्ञा ली कि हम व्यापार में सदा सत्य बोलेगें। आप तीन भाई थे। आपके पिताजी अच्छे पुरुष थे। धनाढ्य भी थे। पिताजीने लाला किशोरीलालजी को आज्ञा दी कि दुकानपर बैठा करो। आज्ञानुसार आप दुकानपर बैठने लगे। जो ग्राहक आता उसे आप सत्य मूल्य ही कहते थे। परन्तु चूँकि आजकल मिथ्या व्यवहारकी बहुलता है, इसलिए ग्राहक लोगोंसे इनकी पटरी न पटे। यह कहें 'अमुक वस्त्र एक रुपया गज मिलेगा। ग्राहक लोग वर्तमान प्रणाली के अनुसार कहें-बारह आना गज दोगे।' यह कहें-'नहीं।' ग्राहक फिर कहें-'अच्छा साढ़े बारह आना गज दोगे।' यह कहें-नहीं।' इस प्रकार इनकी दुकानदारी का हास होने लगा। जब इनके पिताजीको यह बात मालूम हुई तब उन्होंने किशोरीलालजी की बहुत भर्त्सना की और कहा कि 'तू बहुत नादान है। समयके अनुकूल व्यापार होता है। जब बाजारमें सभी मिथ्या भाषण करते हैं
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