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मेरी जीवनगाथा
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पाठशाला खोल रक्खी थी। आगे चलकर छोटी पाठशाला ही इस रूपमें परिवर्तित हो गई। एक वाचनालय भी आपने खोला था, जो आज सरस्वती-वाचनालयके नामसे प्रसिद्ध है।
आजकल भी इस पाठशालाके जो अध्यापक हैं, वे बहुत ही सुयोग्य हैं। प्रधानाध्यापक पं. दयाचन्द्रजी शास्त्री हैं। आपने प्रारम्भसे यहाँ अध्ययन किया। बादमें बनारस चले गये। न्यायतीर्थ परीक्षा पास की। धर्मशास्त्रमें जीवकाण्ड तक ही अध्ययन किया, परन्तु आपकी बुद्धि इतनी प्रखर है कि आप आजकल सिद्धान्तशास्त्रमें जीवकाण्ड, कर्मकाण्ड, त्रिलोकसार, राजवार्तिक तथा धवलादि ग्रन्थोंका अध्यापन करते हैं और न्यायमें प्रमेयकमलमार्तण्ड, अष्टसहस्री, श्लोकवार्तिक आदि पढ़ाते हैं। अनेकों छात्र आपके श्रीमुखसे अध्ययन कर न्यायतीर्थ तथा शास्त्री परीक्षा उत्तीर्ण हुए हैं। आपकी प्रशंसा कहाँ तक की जावे, ये ग्रन्थ प्रायः आपको कण्ठस्थ हैं। आपके बाद पं. माणिकचन्द्रजी हैं। आप छात्रोंको व्युत्पन्न बनानेमें बहुत पटु हैं। आप छात्रोंको प्रारम्भसे ही इतना सुबोध बना देते हैं कि सहज ही मध्यमा परीक्षाके योग्य हो जाते हैं। आजकल आप सर्वार्थसिद्धि, जीवकाण्ड तथा सिद्धान्तकौमुदी भी पढ़ाते हैं। पढ़ानेके अतिरिक्त पाठशालाके सरस्वतीभवन की व्यवस्था भी आप ही करते हैं। आपने आदिसे अन्त तक इसी विद्यालयमें अध्ययन किया है। इनके बाद तीसरे अध्यापक पं. पन्नालालजी साहित्याचार्य हैं। आप बहुत ही सुयोग्य हैं। इन्होंने मध्यमा तक गुरुमुखसे अध्ययन किया। फिर प्रतिवर्ष अपने आप साहित्यका अध्ययन कर परीक्षा देते रहे। इस प्रकार पाँच खण्ड पास किये। सिर्फ छठवीं वर्ष दो मासको बनारस गये और साहित्याचार्य पदवी लेकर आ गये। आप इतने प्रतिभाशाली हैं कि बनारस के छात्र आपसे साहित्यिक अध्ययन करनेके लिए यहाँ आते हैं। आपके पढ़ाये हुए छात्र बहुत ही सुबोध होते हैं। आपने यहीं अध्ययन किया है। कहनेका तात्पर्य यह है कि सागर विद्यालय इन्हीं सुयोग्य विद्वानोंके द्वारा चल रहा है। द्रव्यकी पुष्कलता न होनेपर भी आप लोग योग्य रीतिसे पाठशालाको चला रहे हैं। अब तक पचासों विद्वान् पाठशालासे निष्णात होकर निकल चुके, जिसमें कई तो बहुत बहुत ही कुशल निकले। सन्तोषकी बात यह है कि इस संस्थाका संचालन इसीसे पढ़कर निकले हुए विद्वान् लोग कर रहे हैं। मंत्री इसी पाठशालाके छात्र हैं, छ: अध्यापकोंमें पाँच अध्यापक इसी पाठशालाके पढ़े हुए हैं। सुपरिन्टेन्डेन्ट और क्लर्क भी इसी संस्थाके छात्र
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