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अबला नहीं सबला
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यह निन्द्य-कार्य करते हैं। आप इसे इसके स्वामीके पास ले जाइये। इसके ऊपर दया करना न्यायका गला घोंटना है। आप लोग इतने भीरु हो गये हैं कि अपनी माँ-बहनों की रक्षा करनेमें भी भय करते हैं। मैंने दोपहरको शीलवती देवियों के चरित्र सुने थे, इससे मेरा इतना साहस हो गया। यदि आप लोग न होते तो मैं इस दुष्टकी जो दशा करती यह यही जानता।' इतना कहकर वह उस सिपाहीसे पुनः बोली-'रे नराधम ! प्रतिज्ञा कर कि मैं अब कभी भी किसी स्त्रीके साथ ऐसा व्यवहार न करूँगा, अन्यथा मैं स्वयं तेरे दरोगा के पास चलती हूँ और वह न सुनेंगे तो सागर कप्तान के पास जाऊँगी।'
___ वह विवेकशून्य-सा हो गया। बड़ी देरमें साहसकर बोला-'बेटी ! मुझसे महान् अपराध हुआ। क्षमा करो। अब भविष्यमें ऐसी हरकत न होगी। खेद है कि मुझे आजतक ऐसी शिक्षा नहीं मिली। आपकी शिक्षा प्रत्येक मनुष्योंको सादर स्वीकार करनी चाहिये । इस शिक्षाके बिना हम इतने अधम हो गये हैं कि कार्य-अकार्य कुछ भी नहीं देखते। आज मुझे अपने कर्तव्यका बोध हुआ।' युवतीने उसे क्षमा कर दिया और कहा-'पिताजी ! मेरी थप्पड़ोंका खेद न करना। मेरी थप्पड़ें तुम्हें शिक्षकका काम कर गई। अब मैं मन्दिर जाती हूँ। आप भी अपनी ड्यूटी अदा करें।
__वह मण्डपमें पहुंची और उपस्थित जनताके समक्ष खड़ी होकर कहने लगी-माताओं और बहिनों तथा पिता, चाचा और भाइयों ! आज मेरी उम्रमें प्रथम दिवस है कि मैं एक अबोध स्त्री आपके समक्ष व्याख्यान देनेके लिए खड़ी हुई हूँ। मैंने केवल चार क्लास हिन्दीकी शिक्षा पाई है। यदि शिक्षापर दृष्टि देकर कुछ बोलनेका प्रयास करूँ तो कुछ भी नहीं कह सकती, किन्तु आज दोपहरको मैंने शीलवती स्त्रियोंके चरित्र सुने। उससे मेरी आत्मामें वह बात पैदा हो गई कि मैं भी तो स्त्री हूँ। यदि अपना पौरुष उपयोगमें लाऊँ तो जो काम प्राचीन माताओंने किये उन्हें मैं भी कर सकती हूँ। यही भाव मेरी रग-रगमें समा गया। उसीका नमूना है कि एकने मेरेसे मजाक किया। मैंने उसे जो थप्पड़ें दीं, वही जानता होगा और उससे यह प्रतिज्ञा करवाकर आई हूँ कि 'बेटी ! अब ऐसा असद्व्यवहार न करूँगा।'
प्रकृत बात यह है कि हमारी समाज इस विषयमें बहुत पीछे है। सबसे पहले हमारी समाजमें यह दोष है कि लड़कियोंको योग्य शिक्षा नहीं देते। बहुतसे बहुत हुआ तो चार क्लास हिन्दी पढ़ा देते हैं, जिस शिक्षामें केवल
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