________________
बरुआसागर
271
अधिक नहीं तो साधारण हिन्दीका ही ज्ञान हो जावे । यहाँ पाँच सौ रुपयामें सौ छात्र सानन्द अध्ययन कर सकते हैं। यदि इस प्रान्तको रूढ़ियोंकी राजधानी कहें तो अत्युक्ति न होगी।
बरुआसागर यहाँसे बरुआसागर गया। वहाँ एक विद्यालय है। स्वर्गीय सर्राफ मूलचन्द्रजीने गाँवके बाहर स्टेशनके निकट एक पहाड़ीपर इसकी स्थापना की है। एक ओर महान् सरोवर है और दूसरी ओर अटवी, जिससे प्राकृतिक सुषमा बिखर पड़ी है। छोटा-सा बाजार है और उसमें एक चैत्यालयका पूर्ण प्रबन्ध श्रीमान् बाबू रामस्वरूपजी करते हैं।
आप आगराके निवासी हैं प्रतिदिन पूजा और स्वाध्यायमें तीन घण्टा लगाते हैं। विद्यालयकी रक्षा आपके ही द्वारा हो रही है। श्री स्वर्गीय मूलचन्द्रजी सर्राफ झाँसीमें पाँच कोठा विद्यालयके लिये लगा गये थे, जिनका किराया केवल पच्चीस रुपया मासिक आता है। उतनेसे काम नहीं चलता, अतः विद्यालयको पूर्ण सहायताका भार बाबू रामस्वरूपजी पर ही आ पड़ा है और आप उसे सहर्ष वहन कर रहे हैं।
छात्रोंके रहनेके लिये आपने कई कमरे बनवा दिये हैं। साथ ही अन्य महाशयोंसे भी बनवाये हैं। इस समय विद्यालयका व्यय दो सौ रुपया मासिकसे कम नहीं है। उसकी अधिकांश पूर्ति आप ही करते हैं। आपके यहाँ श्रीयुत दुर्गाप्रसादजी ब्राह्मण आगरा जिलाके रहनेवाले बहुत ही सुयोग्य व्यक्ति हैं। पाठशालाकी सदैव रक्षा करते हैं। आप ही विद्यालयके अध्यक्ष हैं।
श्रीमनोहरलालजी शास्त्री अध्यापक हैं। आप बहुत ही सुयोग्य हैं। छात्रोंको सुयोग्य व्युत्पन्न बनानेकी चेष्टामें रात-दिन लोग रहते हैं। पच्चीस छात्र अध्ययन करते हैं, परन्तु प्रान्तवासियोंकी इस ओर बहुत कम दृष्टि रहती है। इस प्रान्तमें धनाढ्य भी हैं, परन्तु परोपकारके नामसे भयभीत रहते हैं। यदि बहुत उदारता हुई तो जलविहारोत्सवकर कृतकृत्य हो जाते हैं। यदि प्रान्तवासी ध्यान दे तो अल्प व्ययमें अनायास ही बहुसंख्यक छात्रोंका उपकार हो जावे, पर ध्यान होना ही कठिन है।
____ यहाँकी देहातमें प्रायः प्रायमरी पाठशालाएँ नहींके बराबर हैं। प्राचीनकालमें पांडे लोग पढ़ाते थे। उन्हें पूर्णिमा और अमावस्याको लोग सीधा दे देते थे तथा प्रतिमास कोई दो पैसा कोई चार पैसा नकद दे दिया करते। इस तरह उनक निर्वाह हो जाता था और गाँवके बालक सहजमें पढ़ जाते थे। जो कुछ पढ़ाते
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org