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रूढियोंकी राजधानी
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बहुत-सी रूढ़ियोंसे संत्रस्त हैं। मैं प्रायः दो वर्ष तक पैदल भ्रमणकर उन रूढ़ियोंको मिटानेका प्रयत्न करता रहा, फिर भी निःशेष नहीं कर सका। वहाँकी रूढ़ियोंके कुछ उदाहरण देखिये-'एक वंजारीपुरा गाँव है। वहाँ एक बुढ़िया माँ मन्दिरमें दर्शन करनेके लिये गई थी। वहाँ उसके जानेके पहले ही दैववश ऊपरसे एक अंडा गिरकर फूट गया था। उस बुढ़ियाके बालक से एक दूसरे जैनी महाशयका विरोध था। उन्होंने झट पंचायतको बुलाया और प्रस्ताव रक्खा कि बुढ़ियाने अंडा फोड़ डाला है। बुढ़ी माँ सत्यवादिनी थी। उसने कहा-'बेटा ! मेरा पैर अवश्य पड़ा था, परन्तु अण्डा न था उसका छिलका था।' पञ्चोंने एक न सुनी और उसे हत्या लगा दी। हत्या करनेवाले को जो कृत्य करने पड़ते हैं वे सब बुढ़ियाके बालकको करने पड़े। प्रथम तो मन्दिरके दर्शन बन्द किये गये, चार मास बाद उसकी फिर पञ्चायत की गई, देहातके पञ्च बुलाये गये। सबने आकर यह निर्णय दिया कि अमुक तिथिको इनका मिलौना किया जावे। एक पंगत पक्की और एक कच्ची देवें। इसके पहले किसी सिद्धक्षेत्रकी वन्दना करें, ५१) मन्दिरको दण्ड देवें और जब किसीके विवाहमें चल जावें तब विवाहमें बुलाये जावें । इन सब कार्यों में बुढ़ियाके पाँच सौ मिट गये।
एक इससे भी विलक्षण न्याय एक गाँवमें सुननेमें आया। 'एक दिगौड़ा गाँव है। वही दिगौड़ा, जहाँ कि पं. देवीदासजीका जन्म हुआ था। यहाँ पर एक जैनी महाशयका घोड़ा चरनेके लिये गाँवके बाहर गया। वहीं पर एक दूसरे जैनी महाशयका घोड़ा चरता था, जो पहले घोड़ेकी अपेक्षा दुर्बल था। दैवयोगसे उन दोनोंमें परस्पर लड़ाई हो गई। बलिष्ठ घोड़ेने दुर्बल घोड़ेको इतने जोरसे टाँगें मारी कि उसका प्राणान्त हो गया। लोग चिल्लाते हुए आये कि अमुकके घोड़ेने अमकके घोड़ेको इतने जोरसे टाँगें मारी कि वह मर गया। जिसका घोड़ा मर गया था वह रोने लगा, क्योंकि उसीके द्वारा उसकी आजीविका चलती थी। उसने शामको ग्रामपञ्चोंसे प्रार्थना की कि अमुकके घोड़ेने हमारा घोड़ा मार दिया। मैं गरीब आदमी हूँ। यही घोड़ा हमारी आजीविकाका साधन था। जिसके घोड़ेने मारा था वह भी बुलाया गया। पञ्चायत शुरू हुई। अन्त में यह फैसला हुआ कि जिसका घोड़ा दुर्बल था उसको आज्ञा दी गई कि तुमने इतना दुर्बल घोड़ा क्यों रक्खा जो कि घोड़े की टापसे ही मर गया, अतः तुम्हारा मन्दिर बन्द किया जाता है। तुम सिद्ध क्षेत्रकी वन्दना करो। पश्चात्
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