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________________ मेरी जीवनगाथा 268 इतने पर भी हमें आशा है कि हमारे मन्त्रीजीकी आशा शीघ्र ही सफलीभूत होगी। श्री वर्णीजीने केवल यही विद्यालय स्थापित नहीं किया था। किन्तु अपनी जन्म-नगरी जतारामें भी तीन हजारकी लागत का एक मकान बनवाकर वहाँ की पाठशालाके लिए अर्पित कर दिया था। यद्यपि आप मेरे साथ गिरिराजपर रहनेका निश्चय कर चुके थे और कुछ समय तक वहाँ रहे भी, परन्तु विद्यालयके मोहवश पपौराके लिये लौट आये और जन्मभूमि जतारामें समाधिमरणकर स्वर्ग सिधार गये। मेरा दाहिना हाथ भंग हो गया। मुझे आपके वियोगका बहुत दुःख हुआ। पपौरा क्षेत्रसे दस मील पूर्वमें अहार अतिशयक्षेत्र है। यहाँ पर श्रीशान्तिनाथ स्वामीकी अत्यन्त मनोहर प्रतिमा है, जिसकी शिल्पकलाको देखकर आश्चर्य होता है। यहाँ पर भूगर्भमें सहस्रों मूर्तियाँ हैं जो भूमि खोदनेपर मिलती हैं। किन्तु हम लोग उस ओर दृष्टि नहीं देते। यहाँ आस-पास जैन महाशय अच्छी संख्यामें निवास करते हैं। पास ही पठा ग्राम है। वहाँ के निवासी श्री पं. बारेलालजी वैद्यराज क्षेत्रके प्रबन्धक हैं। आप बहुत सुयोग्य और उत्साही कार्यकर्ता हैं। परन्तु द्रव्यकी पूर्ण सहायता न होनेसे शनैः शनैः कार्य होता है। यहाँ पर एक छोटी-सी धर्मशाला भी है। मन्दिरसे आधा फर्लाग पर अहार नामक ग्राम है तथा एक बड़ा भारी सरोवर है। ग्राममें ५ घर जैनियोंके हैं जिनकी स्थिति साधारण है। यहाँसे तीन मील पर वैसा गाँव है जहाँ जैनियों के कई घर हैं। दो घर सम्पन्न भी हैं, परन्तु उनकी दृष्टि क्षेत्रकी ओर जैसी चाहिये वैसी नहीं। अन्यथा वे चाहते तो अकेले ही क्षेत्रका उद्धार कर सकते थे। मैंने यहाँ पर क्षेत्रकी उन्नतिके लिये एक छोटे विद्यालयकी आवश्यकता समझी। लोगोंसे कहा। लोगोंने उत्साहके साथ चन्दा देकर श्रीशान्तिनाथ विद्यालय स्थापित कर दिया। पं. प्रेमचन्द्रजी शास्त्री तेंदूखेड़ावाले उसमें अध्यापक हैं, जो बड़े सन्तोषी जीव हैं। एक छात्रालय भी साथमें है परन्तु धनकी त्रुटिसे विद्यालय विशेष उन्नति नहीं कर सका। रूढ़ियोंकी राजधानी यह एक ऐसा प्रान्त है जहाँ ज्ञानके साधन नहीं। बड़ी कठिनतासे दस प्रतिशत साधारण नागरी जाननेवाले मिलेंगे। यही कारण है कि यहाँके मनुष्य Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004000
Book TitleMeri Jivan Gatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshprasad Varni
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year2006
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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