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________________ पपौरा और अहारक्षेत्र 267 नहीं मिली। वर्णीजी प्रतिष्ठाचार्य भी थे, इससे प्रत्येक प्रान्तमें भ्रमण करनेका अवसर आपको मिलता रहता था । इस कार्यमें आपको जो आय होती थी उसीसे पाँचसौ रुपया मासिककी पूर्ति करते थे । इन्हें जितना धन्यवाद दिया जावे थोड़ा है। मैं तो आपको अपना बड़ा भाई मानता था । आपका मेरे ऊपर पुत्रवत् स्नेह रहता था। हम लोगोंका बहुत समय से परिचय था । प्रारम्भ में वीर विद्यालयके सुयोग्य मन्त्री श्रीमान् पं. ठाकुरदासजी बी.ए. थे । आप सरकारी स्कूलमें काम करते हुए भी निरन्तर विद्यालयकी रक्षामें व्यस्त रहते थे। आपके प्रयत्नसे विद्यालयके लिए एक भव्य भवन बन गया, जो कि बोर्डिंगसे पृथक् हैं। यही नहीं, सरस्वती भवनका निर्माण आदि अनेक कार्य आपके द्वारा सम्पन्न हुए हैं। आप छात्रोंके अध्ययनपर निरन्तर दृष्टि रखते थे । 'छात्र व्युत्पन्न हों' इस विषयमें आपकी विशेष दृष्टि रहती थी । आपके द्वारा केवल विद्यालयकी उन्नति नहीं हुई, क्षेत्रकी भी व्यवस्था सुचारुरूपसे चल रही है। जो जीर्ण मन्दिर थे उनका भी आपने उद्धार कराया तथा भोहरेमें अँधेरा रहता था उसे भी आपने सुधराया । आपकी बुद्धि बड़ी तीक्ष्ण है। आप निरन्तर धर्मकी रक्षामें प्रयत्नशील रहते हैं। आप अंग्रेजी भाषा के साथ-साथ संस्कृतके भी अच्छे विद्वान् हैं। विद्वान् ही नहीं, सदाचारी भी हैं। सदाचारी ही नहीं, सदाचारके प्रचारक भी हैं। आप यदि किसी छात्रमें सदाचारकी त्रुटि पाते थे तो उसे विद्यालयसे पृथक् करनेमें संकोच नहीं करते थे। वर्षों तक आपने मन्त्रीका पद सँभाला, पर अब कई कारणोंसे आपने मन्त्री पदका कार्य छोड़ दिया है। फिर भी विद्यालयसे अरुचि नहीं है । Jain Education International इस समय विद्यालयके मन्त्री श्री खुन्नीलालजी भदौरावाले हैं। आप भी बहुत सुयोग्य व्यक्ति हैं। जिस प्रकार विद्यालय वर्णी मोतीलालजीके समक्ष चलता था, उसी प्रकार चला रहे हैं। आपका कुटुम्ब सम्पन्न है । आप भी सम्पन्न हैं। राज्य के प्रमुख व्यापारी हैं। साथमें ज्ञानी और सदाचारी भी हैं । विद्यालयकी उन्नतिमें निरन्तर प्रयत्नशील रहते हैं। आपके प्रयत्नसे कुछ स्थायी द्रव्य भी हो गया है । आपकी भावना है कि कम-से-कम विद्यालयमें एक लाख रुपयाका स्थायी द्रव्य हो जावे और सौ छात्र अध्ययन करें । राज्यकी सहायतासे यह कार्य अनायास हो सकता है । इस प्रान्तकी जनता विद्यादानमें बहुत कम द्रव्य व्यय करती है । यद्यपि यहाँके महाराज विद्याके पूर्ण रसिक हैं और जबसे आपने राज्यकी बागडोर हाथमें ली है तबसे शिक्षामें बहुत सुधार हुए हैं। फिर भी जनताके सहयोगके बिना एकाकी महाराज क्या कर सकते हैं ? For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004000
Book TitleMeri Jivan Gatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshprasad Varni
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year2006
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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