________________
264
मेरी जीवनगाथा
जबलपुर और खुरई समाजको तार दिये थे, पर वहाँसे कोई नहीं आये। इससे विधवाविवाहके पोषकोंका पक्ष प्रबल होगा । समाजमें बोलनेवालोंकी त्रुटि नहीं, परन्तु समयपर काम करनेवालें नहीं । पञ्चमकाल है । इस समय अधर्मका पक्ष पुष्ट करनेवालोंकी बहुलता होती जाती है।
मध्याह्नके समय विधवाविवाह पोषक व्याख्यान हुए । मनुष्योंका जमाव भी पुष्कल होता रहा। कहाँ तक कहा जावे जो निषेध पक्षके थे वे भी समुदायमें सुननेको आते रहे। रात्रिके समय श्री पं. मुन्नालालजी, पंण्डित मौजीलालजी व लोकमणि दाऊके 'विधवाविवाह आगमानुकूल नहीं, इस विषय पर सारगर्भित व्याख्यान हुए । मैं तो तमाशा देखनेवालोंमें था, क्योंकि मैं इस विषयमें विशेषज्ञान नहीं रखता था । पर मेरा जनतासे यही कहना था कि जो आप लोगोंके ज्ञानमें आवे सो करिये।
1
रात्रिको परवारसभाकी सब्जेक्ट कमेटी हुई, मैं भी गया । यद्यपि वहाँ जितने मेम्बर थे, उसमें अधिकांश विधवाविवाहके निषेधक थे, किन्तु बोलने में पटु न थे। जो पटु थे उनमें बहुभाग पोषक पक्ष के थे ।
I
दूसरे दिन आमसभा हुई । जनताकी सम्मति विधवाविवाहके निषेध पक्षमें थी । यदि प्रस्ताव आता तो लड़ाई होनेकी सम्भावना थी, अतः प्रस्ताव न आया। केवल ब्रह्मचारी शीतलप्रसादजीका विधिपक्षमें व्याख्यान हुआ । उस पक्षवाले प्रसन्न हुए। परन्तु जनताको व्याख्यान सुनकर बहुत दुःख हुआ । लोग मुझसे बोलनेका आग्रह करने लगे। मैं खड़ा हुआ, परन्तु पानी बरसने लगा । मैंने कहा कि 'पानी आ रहा है, इसलिये आप लोग व्याकुल होंगे, अतः अपना-अपना सामान देखिये ।' पर लोगोंने कहा कि 'पानी नहीं पत्थर भी बरसें तो भी हम लोग आपका व्याख्यान सुने बिना न उठेंगे।' अन्तमें लाचार होकर मुझे बोलना पड़ा। उस बारिसके बीच भी लोग शान्तिसे भाषण सुनते रहे । अन्तमें अधिक वर्षा होनेके कारण सभा भंग हो गई।
रात्रिको सात बजते-बजते मण्डपमें जनता एकत्रित हो गई। लोगोंने ब्रह्मचारीजीके बहिष्कारका प्रस्ताव पास कर डाला। इतनेमें ब्रह्मचारीजी बड़े आवेगके साथ यह कहते हुए सभामण्डपमें आये कि मेरा बहिष्कार करनेवाला कौन है ? जनता उत्तेजित हो उठी। एक आदमी बहुत ही बिगड़ा । मैंने उसका हाथ पकड़कर उसे किसी तरह शान्त किया । सेठ ताराचन्द्रजी बम्बईवाले बहुत कुछ रुष्ट हुए । कुछ लोग ब्रह्मचारीजीको समझाकर उनके डेरेपर ले गये ।
1
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org