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परवारसभामें विधवाविवाहका प्रस्ताव
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अवहेलना न करेंगे?' ब्रह्मचारीजीने कहा-'चूंकि अभी तुम्हें समाजकी दुरवस्थाका परिचय नहीं, अतः इस विषयको छोड़ विषयान्तरकी मीमांसा कीजिये। मैंने मन ही मन विचार किया कि अब इस विषयमें चर्चा करना व्यर्थ है। ब्रह्मचारीजीसे भी कहा कि 'आपकी जो इच्छा हो, सो करिये। आशा है आप विचारशील हैं, अतः सहसा कोई कार्य न करेंगे।'
.....इतनी चर्चा होनेके बाद हम बाईजीके यहाँ आये और भोजन किया। इतनेमें श्रीलोकमणि दाऊ भी शाहपुरसे आ गये। यह सम्मति हुई कि जबलपुर और खुरई समाजको एक-एक तार दिया जावे। पण्डित मुन्नालालजीने कहा कि 'चिन्ता मत करो, हम लोग भी वहाँ चलेंगे। यद्यपि वहाँ परवारसभा है और हम गोलापूर्व हैं, अतः उसमें बोलनेका अधिकार हमारे लिये नहीं है। फिर भी हम जनतामें आर्ष-पद्धतिके विरुद्ध कदापि विधवा-विवाहकी वासना न होने देवेंगे, समयकी बलिहारी हैं कि आज विधवा-विवाहकी पुष्टि करनेवालों का समुदाय बनता जाता है। अस्तु, कल हम सब अपनी मण्डली सहित आपके साथ चलेंगे।'
अमरावतीसे श्री सिंघई पन्नालालजी भी आ गये। इस तरह हम सब बीना-बारहाके लिये चलकर देवरी पहुंचे। यह वह स्थान है जहाँ कि श्री प्रेमीजीका जन्म हुआ था। वहाँ से छ: मील बीना-बाराहा क्षेत्र है। रात्रिके सात बजते-बजते वहाँ पहुँच गये। रात्रिको शास्त्र-प्रवचन हुआ। यहाँ पर विधवाविवाहके पोषक प्रायः बहुत सज्जन आ गये थे, केवल साधारण जनता ही विरोधमें थी। परवारसभाका अधिवेशन शानदार होनेवाला था, परन्तु साधारण जनतामें विधवाविवाहकी चर्चा का प्रभाव विरुद्ध रूपमें पड़ा।
रात्रिको सब्जेक्ट कमेटीकी बैठक होनेवाली थी। मेरा भी नाम उसमें था, पर मैं नहीं गया। सभापति महोदयने बैठक स्थगित कर दी। दूसरे दिन स्वागताध्यक्षका प्रारम्भिक भाषण होनेवाला था, परन्तु सभाके न होनेसे उनका भाषण भी रह गया। मैंने स्वागताध्यक्षसे कहा कि आप अपने भाषणकी एक कापी मुझे दे दीजिये। इन्होंने दे दी। मैंने उसका आद्योपान्त अवलोकन किया। उसमें भी विधवाविवाहकी पुष्टि होती थी। मैंने कहा-'सिंघई जी ! आपने यह क्या अनर्थ किया ?' उन्होंने कहा-'यह भाषण मैंने नहीं बनाया। मैंने कहा-'यह कौन मानेगा ?' आपको उचित था कि छपनेके पहले कच्ची कापीको एक बार देख लेते।' आप बोले-'अब क्या हो सकता है ?'
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