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मेरी जीवनगाथा
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पक्षका एक भी नहीं। परन्तु शास्त्रार्थ करनेके बाद इन्हीं महाशयों में बहुतसे आपके अनुयायी हो जावेंगे, क्योंकि संसारमें सब प्रकारके मनुष्य हैं। अतः मेरी तो यही सम्मति है कि बीना-बारहाके दर्शन कर बम्बईकी ओर प्रयाण कर जावें। बड़ा लाभ होगा। यह देश भोला है। यहाँ तो ऐसा प्रचार करो कि जिससे सहस्रों बालक साक्षर हो जावें। अभी आपकी बातका समय नहीं, क्योंकि लोगोंके हृदयमें आप जिस पापकी प्रवृत्ति करना चाहते हैं अभी उसकी वासना तक नहीं है। पञ्चमकालका अभी दसवाँ हिस्सा हो गया है। अभी इतने कलुषित संस्कार नहीं, अतः मेरी प्रार्थनापर मीमांसा करनेकी चेष्टा करिये। शीघ्रता करनेमें आप हानिके सिवाय लाभ न उठावेंगे।' ब्रह्मचारीजी बोले-'तुमने देश-कालपर ध्यान नहीं दिया। वैधव्य होकर दुःख वही जानती है जो विधवा हो जाती है। विषय-सुखकी लालसा सत्तर वर्ष तकके वृद्धको नहीं जाती, अतः कितने ही आदमी सत्तर वर्षकी अवस्थामें भी विवाह करनेसे नहीं चूकते और समाज में ऐसे-ऐसे मूढ़ लोग भी हैं जो धनके लालचसे कन्याको बेच देते हैं। फिर जब वह वृद्ध मर जाता है तब उस बेचारी विधवाकी जो दशा होती है वह समाजसे छिपी नहीं। अनेक विधवाएँ गर्भपात करती हैं और अनेक विधर्मियोंके घर चली जाती हैं। एतदपेक्षा यदि विधवाविवाह कर दिया जावे तब कौन-सी हानि है ? मैं बोला-'हानि जो है सो प्रकट है। जिन जैनियोंमें इनकी प्रथा हो गई है उनकी दशा देखनेसे तरस आता है। इसके प्रचारसे जो अनर्थ होंगे उनका अनुमान जिनमें विधवाविवाह होता है उनके व्यवहारसे कर सकते हो। जो हो, इस विषयपर मैं शास्त्रार्थ करना उचित नहीं समझता । इसका पक्ष लेना केवल पापका पोषक होगा। आप भी अन्तमें पश्चात्ताप करेंगे। आपका यश समाजमें बहुत है, उसे कलंकित करना सर्वथा अनुचित है। जो आपके पथके पोषक हैं वे एक भी आपके साथी न रहेंगे। यदि आपको मेरा विश्वास न हो तो उनके घर ही से इस प्रथाको चलाइये, तब पता लग जावेगा। केवल कहने मात्रसे कुछ नहीं होगा। लोग तो अन्तरंगसे मलिन हैं, केवल कौतुहल देखना चाहते हैं। आप, और पण्डितोंमें परस्पर शास्त्रार्थ कराकर तमाशा देखना चाहते हैं। आपकी जो इच्छा हो, सो करें। मैं तो आपका हितैषी हूँ। देखो, प्रथम तो आप ब्रह्मचारी हैं, ब्रह्मचारी ही नहीं, विद्वान् भी हैं, दिगम्बर सम्प्रदायके अनुयायी हैं, पाश्चात्य विद्यामें भी आपका अच्छा ज्ञान है, व्याख्याता भी हैं, तथा आपका समाजमें अच्छा आदर है। आशा है कि आप इस दुराग्रहको छोड़ आर्षवाक्योंकी
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