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मेरी जीवनगाथा
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प्रान्तके हैं। परन्तु इनकी दृष्टि इस ओर नहीं, यह अज्ञानताकी ही महिमा है । पपौरा जैसा उत्तम स्थान इस प्रान्तमें नहीं, यहाँ ७५ जैन मन्दिर हैं बड़े-बड़े जिनालय हैं। आजकल लाखों रुपयों में भी वैसी सुन्दर और सुदृढ़ इमारतें नहीं बन सकतीं। यहाँ बड़गैनीका एक बहुत ही भव्य मन्दिर है । उसकी दन्तकथा इस प्रकार सुनी जाती है :
बड़गैनीका पति बहुत बीमार था । उनके कोई पुत्र न था । जिनके कोई वारिस न हो उनके धनका स्वामी राज्य होता था । किन्तु वह द्रव्य यदि धर्म-कार्यमें लगा दी जावे तो राज्यकी ओरसे धर्ममें पूर्ण सहायता दी जाती थी और द्रव्य राज्यमें नहीं जाती थी.... ऐसा वहाँके राज्यका नियम था । जिस रात्रिको बड़गैनीका पति मरनेवाला था उस रात्रिको बड़गैनीने सबसे कहा कि आप लोग अपने-अपने घर जाइये। जब सब लोग चले गये तब बड़गैनीने अन्दर से किवाड़ लगा लिये और सब धन, जो लाख रुपयेसे ऊपर था, आँगनमें रखकर उस पर हल्दी चावल छिड़क दिये । रात्रिके बारह बजे पतिका अन्त हो गया । प्रातःकाल दाहक्रिया होनेके बाद राज्यकर्मचारीगण आये । बड़गैनीने कहा- 'धन तो आँगनमें रक्खा है आप लोग ले जाइये । परन्तु मैंने अपने मृत पतिकी आज्ञानुसार यह सब धन धर्म-कार्यमें लगानेका निश्चय कर लिया है।' कर्मचारीगणने वापिस जाकर दीवान साहबको सब व्यवस्था सुना दी। दीवान साहबने प्रसन्न होकर आज्ञा दी कि वह जो भी धर्मकार्य करना चाहे, आनन्दसे करें । राज्यकी ओरसे उसमें पूर्ण सहायता दी जानी चाहिये । बड़गैनीने पपौरा जाकर बड़े समारोहके साथ मन्दिरकी नींव डाल दी और शीघ्र ही मन्दिर बनवा कर पञ्चकल्याणक करनेका निश्चय कर लिया । गजरथ उत्सव हुआ जिसमें एक लाख जैनी और एक लाखसे भी अधिक साधारण लोग एकत्रित हुए थे । राज्यकी ओरसे इतना सुन्दर प्रबन्ध था कि किसीकी सुई भी चोरी नहीं गई। तीन पंगतें हुईं, जिनमें प्रत्येक पंगतमें पचहत्तर हजारसे कम भोजन करनेवालोंकी संख्या न होती थी। तीन लाख आदमियोंका भोजन बना था । आजकल तो इस प्रथाको व्यर्थ बताने लगे हैं। अस्तु, समयकी बलिहारी हैं।
एक बात और विलक्षण हुई सुनी जाती है जो इस प्रकार है-मेलाके समय कुवोंका पानी सूख गया, जिससे जनता एकदम बेचैन हो उठी । किसीने कहा मन्त्रका प्रयोग करो। किसीने कहा तन्त्रका उपयोग करो। पर बड़गैनी
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