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वर्णीजी अपनी पूर्वावस्थामें(पृष्ठ ११८)
इस तरह जहाँ तक बनता शरीरको सम्हालनेमें कसर नहीं रखता था, परन्तु यह सब होने पर भी मेरी पापमय प्रवृत्ति
स्वप्नमें भी नहीं होती थी। (पृष्ठ १५१)
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