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मैं श्री धर्मविजय सूरिके साथ (अपने विद्यागुरु) श्री अम्बादासजी शास्त्री के पास पहुँच गया। (पृष्ठ ६६)
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अवश्य ही तुम लोगों के लिए इस स्थान पर (भदैनीघाट पर) विद्या का ऐसा आयतन होगा, जिसमें उच्चकोटि के विद्वान्
बनकर धर्म का प्रसार करेंगे। (पृष्ठ ६६)
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