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प्रभावना
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उन्हें निकाल कर सुरक्षित स्थान पर रख देते हैं ...... यह सब होने पर भी आपके यहाँ जो दया बतलाई है उससे आप लोग वंचित रहते हैं । एक वृद्धको उसके लड़केने लाठी मार दी, यह तुम लोग देखते रहे। क्या एकदम लाठी मार दी होगी ? नहीं, पहले तो वृद्धने उसे कुछ अनाप-शनाप गाली दी होगी। पश्चात् लड़केने कुछ कहा होगा। धीरे-धीरे बात बढ़ते-बढ़ते यह अवसर आ गया कि लड़केने पिताका शिर फोड़ दिया। आप लोगोंको उचित था कि उसी समय जबकि उन दोनोंकी बात बढ़ रही थी, उन्हें समझा कर या स्थानान्तरित करके शान्त कर देते। परन्तु तुम लोगोंकी यह प्रकृति पड़ गई कि झगड़ामें कौन पड़े ? यह शूरता नहीं, यह तो कायरता है । पीछे जब लड़के ने वृद्धका शिर फोड़ दिया तब चिल्लाने लगे कि हाय रे हाय ! कैसा दुष्ट बालक है । पर हम आपसे ही पूछते हैं कि ऐसी समवेदना किस काम की ? तुम लोग केवल बोलने में शूर हो, जिसका समवेदनामें कर्त्तव्य नहीं उससे क्या लाभ ? कार्य करनेमें नपुंसक हो । उचित तो यह था कि उस वृद्धकी, उसी समय औषधि आदिसे सेवा करते । परन्तु तुम्हें तो खून देखनेसे भय लगता है । पराये शरीर की रुग्णावस्था देख ग्लानि आती है। तुम लोग अपने माँ-बापकी शुश्रुषा नहीं कर सकते । व्यर्थ ही अहिंसा धर्मकी अवहेलना कर रहे हो। इसमें कोई सन्देह नहीं कि अहिंसा ही परम धर्म है । परन्तु तुम लोगोंकी भाषा ही बोलनेमें मधुर है । तुम्हारा अन्तरंग शुद्ध नहीं। हम लोगोंसे आप लोग घृणा करते हैं । परन्तु कभी एकान्तमें यह विचारा कि हम ईसाई क्यों हो गये ? खानेके लिए अन्न न मिला । पहिननेके लिए वस्त्र नहीं मिलें । उस हालतमें आप ही बतलाइये, क्या करते ? आपका धर्म इतना उत्कृष्ट है कि उसका पालन करनेवाला संसारमें अलौकिक हो जाता है । परन्तु तुम्हारे आचरणको देखकर मुझे तो दया आती है । मुझे तो ऐसे स्वार्थी लोगोंको मनुष्य कहते हुए भी लज्जा आती है, अतः मेरी तो आपसे यह विनय है कि आप लोग जितना बोलते हैं उसका सौवां हिस्सा भी पालन करनेमें लावें तो आपकी उपमा इस समय भी मिलना कठिन हो जावे। आप लोगोंमें इतनी अज्ञानता समा गई है कि आप लोग मनुष्यको मनुष्य नहीं मानते। सबसे उत्कृष्ट मनुष्य-पर्याय है, उसका आप लोगोंको ध्यान नहीं । यदि इसका ध्यान होता तो आपके धनका सदुपयोग मनुष्यत्वके विकास में परिणत होता । आप लोगोंके यहाँ एक भी ऐसा आयतन नहीं, जिसमें बालकों को प्रथम धार्मिक शिक्षा दी जाती हो । आप लोगोंके लाखों रुपये मन्दिरप्रतिष्ठा
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