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प्रभावना
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प्रथम तो आपकी आयका बहुत-सा अंश इनकम टैक्सके रूपमें गवर्नमेन्ट ले जाती है, बहुत-सा विवाह आदिमें चला जाता है और कुछ अंश हम जैसे कंगाल भाई फक्कड़बाजीसे मांग ले जाते हैं। हम तो मूर्ख हैं यदि कोई विद्वान् हो तो इसकी मीमांसामें एक पुराण बना सकता है।
मैं जन्मसे भिखमंगा न था, एक धनाढ्य कुलमें उत्पन्न हुआ था, जातिका द्विज वर्ण हूँ, मेरे जमींदारी होती थी और लेन-देन भी था। मेरे दुर्भाग्यसे मेरा बाप मर गया। मेरा धन मेरे चाचा आदिने हड़प लिया। मेरी स्त्री शोकमें मर गई। मैं दुःखी हो गया। खानेको इतना तंग हुआ कि कभी-कभी शाम तक भोजन मिलना भी कठिन हो गया। अन्तमें यह विचार किया कि ईसाई या मुसलमान हो जाऊँ, परन्तु धर्मपरिवर्तनकी अपेक्षा भीख माँगना ही उचित समझा। मैं सात क्लास हिन्दी पढ़ा हूँ, इससे माँगनेका ढंग अच्छा है। जबसे भिक्षा माँगने लगा हूँ, सुखसे हूँ। विषयकी लिप्सासे एक भिखमंगीको स्त्री और एकको दासी बना लिया है। यद्यपि मुझे इस बातका पश्चात्ताप है कि मैंने अन्याय किया और धर्मशास्त्रके विरुद्ध मेरा आचरण हुआ। परन्तु करता क्या ? 'आपत्काले मर्यादा नास्ति' | यह हमारी रामकहानी है। अब आप विवेकसे भिक्षा देना, अन्यथा पैसा भी खोओगे और गाली भी खाओगे। पुण्यका लेश भी पाना तो दूर रहा, अविवेकसे दान देना मूर्खता है। अच्छा अब मैं जाता हूँ.... ....इतना कहकर वह आगे चला गया और हम समीप ही इकट्ठे हुए लोगोंके साथ इन भिखमंगोंकी चालाकीपर अचम्भा करने लगे।
प्रभावना व्यवहारधर्म की प्रवृत्ति देश-कालके अनुसार होती है। अभी आप मारवाड़में जाइये, वहाँ आपको गेहूँ आदि अनाज धोकर खानेका रिवाज नहीं मिलेगा। परन्तु चुगनेकी पद्धति बहुत ही उत्तम मिलेगी। भोजन करनेके समय वहाँके लोग पैरोंके धोनेमें सेरों पानी नहीं ढोलेंगे और स्नान अल्प जलमें करेंगे। इसका कारण यह है कि वहाँ पानीकी बहुलता नहीं। परन्तु हमारे प्रान्तमें बिना धोया अनाज नहीं खावेंगे, भोजनके समय लोटा भर पानी ढोल देवेंगे और स्नान भी अधिक जलसे करेंगे। इसका मूल कारण पानीकी पुष्कलता है। इन क्रियाओंसे न तो मारवाड़की पद्धति अच्छी है और न हमारी बुरी है। त्रसहिंसा वहाँ भी टालते हैं और यहाँ भी टालते हैं। यह तो बाहृा क्रियाओंकी बात रही। अब कुछ धार्मिक बातों पर भी विचार कीजिए-जिस
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