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भिक्षा से शिक्षा
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भूखकी वेदना होने लगी, अतः स्थानसे जो लाभ लेना चाहिये वह न ले सके
और एक घण्टा चलकर तलहटीकी धर्मशालामें आ गये। वहाँ भोजनादिसे निवृत्त होकर लेट गये।
यहाँसे चलकर पश्चात् रेलमें सवार होकर अहमदाबाद होते हुए बड़ौदा आये। यहाँपर बहुतसे स्थान देखने योग्य हैं, परन्तु शरीरमें स्वास्थ्यके न रहनेसे दाहोद चले आये। यहाँ एक पाठशाला है, जिसमें पं. फूलचन्द्रजी पढ़ाते हैं। यह विद्वान् हैं और सन्तोषी भी। उनके आग्रहसे आठ दिन यहाँ ठहर गये।
यहाँ सन्तोषचन्द्रजी अध्यात्मशास्त्रके अच्छे विद्वान् हैं। आपकी स्त्रीका भी अध्यात्मशास्त्रमें अच्छा प्रवेश है। इनके सिवाय और भी बहुत भाई अध्यात्मके प्रेमी ही नहीं, परीक्षक भी हैं। एक दिन मैं सायंकाल सामायिक करके टहल रहा था, इतनेमें एक बाईजी कहती हैं 'यदि प्यास लगी है तो पानी पी लीजिये। अभी तो रात्रि नहीं हुई। मैंने कहा-'यह क्यों ? क्या मेरी परीक्षा करना चाहती हो ? उसने कहा-'अभिप्राय तो यही था, पर आप तो परीक्षामें फेल नहीं हुए। बहुतसे फेल हो जाते हैं।'
यहाँ जितने दिन रहा तत्त्वचर्चामें काल गया। पश्चात् यहाँसे चलकर उज्जैन आया और वहाँसे भोपाल होता हुआ सागर आ गया।
भिक्षा से शिक्षा पहलेकी एक बात लिखनी रह गई है। जब मैं कटराकी धर्मशालामें नहीं आया था, बड़ा बाजारमें श्री सिं.बालचन्द्रजीके ही मकानमें रहता था, तबकी बात है। मेरे मकानके पास ही एक लम्पूलाल रहते थे, जो गोलापूर्व वंशज थे। बहुत ही बुद्धिमान् और विवेकी जीव थे। हमेशा श्री सिं. बालचन्द्रजीके शास्त्रप्रवचनमें आते थे। पाँच सौ रुपयासे ही आप व्यापार करते थे। आपकी स्त्री भी धर्मात्मा थी। उनका हमसे बड़ा प्रेम था। जब लम्पूलालजी बीमार पड़े तब समाधिमरणसे देहका त्याग किया और उनके पास जो द्रव्य था उसका यथायोग्य विभाग कर ७५) हमारे फल खानेके लिये दे गये। वे बाईजीसे कहा करते थे कि वर्णीजी आपसे अधिक खर्च करते हैं। न जाने आप इनका निर्वाह कैसे करती हैं। ये प्रकृतिके बड़े उदार हैं। बाईजी हँसकर कह देती थीं कि जब सम्पत्ति समाप्त हो जावेगी तब देखा जायेगा, अभीसे चिन्ता क्यों करूँ। वे व्यवहारके भी बड़े पक्के थे। एक दिन बाईजीके पास आकर बोले-'बाईजी !
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