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मेरी जीवनगाथा
है। बहुत ही सुन्दर रचना है । इसके बाद बौद्ध गुफा देखने गये। यह भी अपूर्व गुफा थी । मूर्तिका मुख देखकर मुझे तो जैन बिम्बका ही निश्चय हो गया । यहाँपर पचासों गुफाएँ जो एक-से-एक बढ़कर हैं।
एक बात विचारणीय है कि वहाँ सब धर्मवालोंके मन्दिर पाये जाते हैं । उन लोगोंमें परस्पर कितना सौमनस होगा। आज तो साम्प्रदायिकताने भारतको गारत बना दिया । धर्म तो आत्माकी स्वाभाविक परिणति है । उपासनाके भेदसे I जनतामें परस्पर बहुत ही वैमनस्य हो गया है जो कि दुःखका कारण बन रहा है। यह आत्मा अनादिसे आनात्मीय पदार्थोंमें आत्मबुद्धिकी कल्पनाकर अनन्त संसारका पात्र बन रहा है। इसे न तो कोई नरक ले जाता है और न कोई स्वर्ग । यह अपने ही शुभाशुभकर्मोंके द्वारा स्वर्गादि गतियोंमें भ्रमण करनेका पात्र होता है। मनुष्यजन्म पानेका तो यह कर्त्तव्य था कि अपने सदृश सबकी रक्षा में प्रयत्नशील होते। जैसे दुःख अपने लिए इष्ट नहीं वैसे ही अन्यको भी नहीं । फिर हमें अन्यको कष्ट देनेका क्या अधिकार ? अस्तु,
यह गुफा हैदराबाद राज्यमें है । राज्यके द्वारा यहाँका प्रबन्ध अच्छा है। सब गुफाएँ सुरक्षित हैं। पहले समय में धर्मान्ध मनुष्योंने कुछ क्षति अवश्य पहुँचाई है। न जाने मनुष्य जातिमें भी कैसे-कैसे राक्षस पैदा होते हैं ? जिनका यह अन्ध विश्वास है कि हम जो कुछ उचित या अनुचित करें वही उचित है और जो अन्य लोग करते हैं वह सब मिथ्या है। इतने मतोंकी सृष्टिका मूल कारण इन्हीं मनुष्योंके परिणामोंका तो फल है। धर्म तो आत्माकी वह परिणति है जिससे न तो आत्मा आप संसारका पात्र हो और न जिस आत्माको वह उपदेश कर वह भी संसार वनमें रुले। प्रत्युत अनुकूल चलकर बन्धनसे छूटे । परन्तु अब तो हिंसादि पञ्च पापोंके पोषक होकर भी आपको धार्मिक बनानेका प्रयत्न करनेमें भी अपनी सम्पूर्ण शक्ति लगा देते हैं। जैसे बकरा काटकर भी कहते हैं कि भगवती माता प्रसन्न होती हैं। गोकुशी करके परवर्दगार जहाँपनाहको प्रसन्न करनेकी चेष्टाकी जाती है। यह सब अनात्मीय पदार्थोंमें आत्मा माननेका फल है। यही कारण है कि यहाँ भी गुफाओंमें जो मूर्तियाँ हैं उनके बहुतसे अंग-भंग कर दिये गये हैं। विशेष क्या लिखें ? यहाँ जैसी गुफा भारतवर्षमें अन्य नहीं । यहाँ आकर दौलताबाद किला देखा । वह भी दर्शनीय वस्तु है । मीलों लम्बी सुरंग है । एक सुरंगमें मैं चला गया। एक फर्लांग गया। फिर भयसे लौट आया। आने-जानेमें कोई कष्ट नहीं हुआ । चपरासी बोला- 'यदि चले जाते तो चार फर्लांग बाद तुम्हें मार्ग मिल जाता । किला देखकर हम लोग फिर रेलवे
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