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मेरी जीवनगाथा
द्रव्य व्यय कर सकते हो । परन्तु मुझसे पूछो तो क्या अँगूठी आपको रखनी न्यायोचित है। कोई कहे या न कहे, पर यह निश्चित है कि आप अनुचित वेशभूषा रखते हैं। आप ब्रह्मचारी हैं। आपको हीराकी अंगूठी क्या शोभा देती है ? यदि आपके तेलका हिसाब लगाया जावे तो मेरी समझसे उतनेमें एक आदमीका भोजन हो सकता है। आप दो आना रोजका तेल सिरमें डालते हैं । इतनेमें आनन्दसे एक आदमीका पेट भर सकता है । यह तो तेलकी बात रही । यदि फलादिकी बात कही जावे तो आप स्वयं लज्जित हो उठेंगे, अतः आशा करता हूँ कि आप इसका सुधार करेंगे।'
वह था तो बालक, पर उसके मुखसे अपनी इतनी खरी समालोचना सुनकर मैं बहुत ही प्रसन्न हुआ और उसी समय मैंने वह हीरा सिंघई कुन्दनलालजीको दे दिया तथा भविष्यमें हीरा पहिनने का त्याग कर दिया । साथ ही सुगन्धित तेलोंका व्यवहार भी छोड़ दिया। मेला पूर्ण होनेके बाद सागर आ गयें। और आनन्दसे पाठशालामें रहने लगे ।
श्रीगोम्मटेश्वर - यात्रा
संवत् १९७६ की बात है। अगहनका मास था। शरदीका प्रकोप वृद्धिपर था । इसी समय सागर जैन समाजका विचार श्रीगिरिनारजी तथा जैनबिद्रीकी वन्दना करनेका स्थिर हो गया। अवसर देख बाईजीने मुझसे कहा- 'बेटा ! एक बार जैनबिद्रीकी यात्राके लिये चलना चाहिये। मेरे मनमें श्री १००८ गोम्मटेश्वर स्वामीकी मूर्तिके दर्शन करनेकी बड़ी उत्कण्ठा है।' मैंने कहा - 'बाईजी ! सात सौ रुपया व्यय होगा । ललिताको भी साथ ले जाना होगा।' उन्होंने कहा'बेटा ! रुपयोंकी चिन्ता न करो।' उसी समय उन्होंने यह कहते हुए सात सौ रुपये सामने रख दिये कि मैं यह रुपये यात्राके निमित्त पहलेसे ही रक्खे थी । इतनेमें मुलाबाईने भी यात्राका पक्का विचार कर लिया। सेठ कमलापतिजी वरायठावालोंका भी विचार स्थिर हो गया और श्रीयुत गुलाबी, जो कि पं. मनोहरलालजी वर्णीके पिता थे, यात्राके लिए तैयार हो गए। एक जैनी कटराबाजारमें था। मुलाबाईने उसे साथ ले जानेका निश्चय कर लिया। इस प्रकार हम लोगोंका यात्राका पूर्ण विचार स्थिर हो गया। सब सामग्रीकी योजना की गई और शुभ मुहूर्तमें प्रस्थान करनेका निश्चय किया गया
श्री सिंघई कुन्दनलालजी, जो हमारे परमस्नेही हैं, आये और हमसे कहने लगे कि आनन्दसे जाइये और तीन सौ रुपया मेरे लेते जाइये। इनके
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