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महिलाका विवेक
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परन्तु स्वास्थ्य बिगड़ता ही गया। चार मास बाद आप घर आ गये। अन्तमें आपको जलोदर रोग हो गया। एक दिन पेशाब बन्द हो गई, जिससे बेचैनी अधिक बढ़ गई। सदरसे डाक्टर साहब आये। उन्होंने मध्याह्नमें मदिराका पान करा दिया। यद्यपि इसमें न उनकी स्त्रीकी सम्मत्ति थी और न पूर्णचन्द्रजीकी ही राय थी। फिर भी कुटुम्बके कुछ लोगोंने बलात्कार पान करा दिया।
उनकी धर्मपत्नीने मुझे बुलाया, परन्तु मैं उस दिन दमोह गया था। जब चार बजेकी गाड़ीसे वापिस आया और मुझे उनकी बीमारीका पता चला तो मैं शीघ्र ही उनके घर चला गया। उनकी धर्मपत्नीने कहा-'वर्णीजी ! मेरे पतिकी अवस्था शोचनीय है। अतः इन्हें सावधान करना चाहिए। साथ ही इनसे दान भी कराना चाहिये, अतः अभी तो आप जाइये और सायंकालकी सामायिक कर आ जाइये।
___ मैं कटरा गया और सामायिक आदिकर शामके ७ बजे बड़कुरजीके घर पहुँच गया। जब मैं वहाँ पहँचा तब चमेलीचौककी अस्पतालका डाक्टर था। उसने एक आदमीसे कहा कि 'हमारे साथ चलो, हम बरांडी देंगे। उसे एक छोटे ग्लाससे पिला देना। इन्हें शान्तिसे निद्रा आ जावेगी।' पन्द्रह मिनट बाद वह आदमी दवाई लेकर आ गया। छोटे ग्लासमें दवाई डाली गई। उसमें मदिराकी गन्ध आई। मैंने कहा-'यह क्या है ?' कोई कुछ न बोला। अन्तमें उनकी धर्मपत्नी बोली-'मदिरा है यद्यपि पूर्णचन्द्रजीने और मैंने काफी मना किया था। फिर भी उन्हें दोपहरको मदिरा पिला दी गई और अब भी वही मदिरा दी जा रही है।' मैंने कहा-'पाँच मिनटका अवकाश दो। मैं श्री पन्नालालजीसे पूछता हूँ। मैंने उनके शिरमें पानीका छींटा देकर पूछा 'भाई साहब ! आप तो विवेकी हैं। आपको जो दवाई दी जा रही है वह मदिरा है। क्या आप पान करेंगे ?' उन्होंने शक्ति भर जोर देकर कहा-'नहीं आमरणान्त मदिराका त्याग । सुनते ही सबके होश ठिकाने आ गये और औषधि देना बन्द कर दिया। सबकी यही सम्मत्ति हुई कि यदि प्रातःकाल इनका स्वास्थ्य अच्छा रहा तो औषधि देना चाहिये।
इसके बाद मैंने पन्नालालजीसे कहा कि 'आपकी धर्मपत्नीकी सम्मत्ति है कि आप कुछ दान करें आयुका कुछ विश्वास नहीं।' धर्मपत्नीने भी कहा कि कितना दान देना इष्ट है ?' उन्होंने हाथ उठाया। औरतने कहा कि 'हाथमें पाँच अंगुलियाँ होती हैं, अतः पाँच हजार रुपयाका दान हमारे पतिको इष्ट है।
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