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मेरी जीवनगाथा
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रूढ़िवादका एक उदाहरण यह प्रान्त अज्ञान-तिमिरव्याप्त है। अतः अनेक कुरूढ़ियोंका शिकार हो रहा है। क्या जैन, क्या अजैन, सभी पुरानी लीकको पीट रहे हैं और धर्मकी
ओटमें आपसी वैमनस्यके कारण एक दूसरेको परेशान करते रहते हैं। इसी द्रोणगिरिकी बात है। नदीके घाटपर एक ब्राह्मणका खेत था। उनका लड़का खेतकी रखवाली करता था। एक गाय उसमें चरनेके लिये आई और उसने भगानेके लिये एक छोटा-सा पत्थर उठाकर मार दिया। गाय भाग गयी। दैवयोगसे यही गाय पन्द्रह दिन बाद मर गयी। ग्रामके ब्राह्मण तथा इतर समाजवालोंने उस बालकको ही नहीं उसके सर्वकुटुम्बको हत्याका अपराध लगा दिया। बेचारा बड़ा दुःखी हुआ। अन्तमें पञ्चायत हुई, मैं भी वहीं था।
बहुतोंने कहा कि इन्हें गंगाजीमें स्नान कराकर पश्चात् हत्या करनेवालोंकी जैसी शुद्धि होती है वैसी इनकी होनी चाहिये। मैंने कहा-'भाई ! प्रथम तो इनसे हिंसा हुई नहीं। निरपराधको दोषी बनाना न्यायसंगत नहीं। इनके लड़केने गाय भगानेके लिये छोटा-सा पत्थर मार दिया। उसका अभिप्राय गाय भगानेका था, मारनेका नहीं। यथार्थमें उसके पत्थरसे गाय नहीं मरी, पन्द्रह दिन बाद उसकी मौत आ गई, अतः अपने आप मर गई, इसलिये ऐसा दण्ड देना समुचित नहीं।
बहुतसे कहने लगे-ठीक है, पर बहुतसे पुरानी रूढिवाले कुछ सहमत नहीं हुए। अन्तमें यह निर्णय हुआ कि ये सत्यनारायणकी एक कथा करवायें और ग्राम भरके घर पीछे एक आदमी का भोजन करावें.इस प्रकार शुद्धि हुई। बेचारे ब्राह्मणके सौ रुपया खर्च हो गये। मैं बहुत खिन्न हुआ। तब ब्राह्मण बोला-'आप खेद न करिये मैं अच्छा निपट गया, अन्यथा गंगाके कर्म करने पड़ते और तब मेरी गृहस्थी ही समाप्त हो जाती।' यह तो वहाँके रूढ़िवादका एक उदाहरण है। इसी प्रकार वहाँ न जाने प्रतिवर्ष कितने आदमी रूढ़ियोंके शिकार होते रहते हैं।
द्रोणगिरि क्षेत्रपर पाठशालाकी स्थापना मैं जब पपौराके परवारसभाके अधिवेशनमें गया तब वहाँ सेंदपा (द्रोणगिरि) निवासी एक भाई गया था। उसने कई पण्डितोंसे निवेदन किया कि द्रोणगिरिमें एक पाठशाला होनी चाहिये, परन्तु सबने निषेध कर दिया। अन्तमें मुझसे भी कहा कि 'वर्णीजी ! द्रोणगिरिमें पाठशालाकी महती आवश्यकता है। मैंने
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