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मेरी जीवनगाथा
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पाठशालाके नहीं हो सकती। आपके इतने बड़े प्रान्तमें यह एक ही पाठशाला है जिसमें बड़े-बड़े विद्वानोंके द्वारा विधिवत् अध्ययन कराया जाता है। परन्तु उनके बिना उसकी अवस्था अच्छी नहीं है, अतः मैं प्रार्थना करता हूँ कि आप लोग उसे अपना पूरा-पूरा सहयोग देवेंगे। आशा है मेरी प्रार्थना व्यर्थ न जावेगी।
उपस्थित जनताने दिल खोलकर चन्दा दिलवाया और १५ मिनटके अन्दर पन्द्रह हजार रुपयोंका चन्दा हो गया। सागरके प्रान्तभरने यथाशक्ति उसमें दान दिया। पश्चात् सभा विसर्जित हुई। बाहरसे जो विद्वान् व धनाढ्य आये थे वे सब अपने-अपने घर चले गये। मैं दूसरे ही दिनसे चन्दाकी वसूलीमें लग गया और यहाँका चन्दा वसूल कर देहातमें भ्रमणके लिए निकल पड़ा।
वैशाखिया श्री पन्नालालजी गढ़ाकोटा ___एक मास तक देहातमें भ्रमण करता रहा। इसी भ्रमणमें गढ़ाकोटा पहुँचा जो विशेष उल्लेखनीय है। यहाँ पर श्री पन्नालालजी वैशाखिया बड़े धार्मिक पुरुष थे। आपके १००००) का परिग्रह था। आप प्रातःकाल सामायिक करते थे, अनन्तर शौचादि क्रियासे निवृत्त होकर मन्दिर जाते थे और तीन घंटा वहाँ रहकर पूजन-पाठ तथा स्वाध्याय करते थे।
यहीं पर श्री फुन्दीलालजी थे। छहघरियाके साथ मेरा परिचय हो गया। आप गानविद्याके आचार्य थे। जिस समय आप भैरवीमें गाजेबाजेके साथ सिद्धपूजा करते थे उस समय श्रोतागण मुग्ध हो जाते थे। आपको समयसारका अच्छा ज्ञान था। आप भी मन्दिरमें बहुत काल लगाते थे। यहाँ पर श्री सोधिया दरयावसिंहजी भी कभी-कभी इन्दौरसे आ जाया करते थे। आप यद्यपि सर सेठ साहबके पास इन्दौरमें रहने लगे थे, पर आपका घर गढ़ाकोटा ही था। आप बड़े निर्भीक वक्ता थे। उन दिनों दैवयोगसे आपका भी समागम मिल गया। आपका शिक्षाके विषयमें यह सिद्धान्त था कि बालकोंको सबसे पहले धर्मकी शिक्षा देना चाहिये जिससे कि वे धर्मसे च्युत न हो सकें। इसमें उनकी प्रबल युक्ति यह थी कि देखो, अंग्रेजीके विद्वान् प्रथम धर्मकी शिक्षा न पानेसे इस व्यवहार धर्मको दम्भ बताने लगते हैं, अतः पहले धर्म विद्या पढ़ाओ, पश्चात् संस्कृत । पर मेरा कहना यह था कि बालकोंको धर्ममें देवदर्शन तथा पूजनकी शिक्षा तो दी ही जाती है; अतः बनारसकी प्रथम परीक्षा दिलानेके बाद यदि धर्मशास्त्रका अध्ययन कराया जावे तो लड़के व्युत्पन्न होंगे। कहनेका तात्पर्य
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