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मोराजीके विशाल प्रांगणमे
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जबतक पाठशाला चले तबतक हम उसपर काबिज रहें और यदि दैव प्रकोपसे पाठशाला न चले तो मकानवालोंको सौंप देवेंगे।' इसपर पाठशालाके कुछ अधिकारियोंने पहले तो सम्मति न दी परन्तु समझाने पर सब सम्मत हो गये। अब चिन्ता इस बातकी हुई कि मकान कैसे बने ? पाठशालाके अधिकारियोंने कमेटी कर यह निश्चय किया कि फिलहाल पाँच हजार रुपया लगाकर एक मंजला कच्चा मकान बना लिया जावे और इसका भार श्रीमान् करोड़ीमल्लजीको सौंपा जावे । श्रीमान् करोड़ीमल्लजीने इस भारको सहर्ष स्वीकार किया। आप पाठशालाके मन्त्री भी थे। तीन मासमें आपने मकान तैयार कर दिया और पाठशाला श्री ढाकनलालजीके मकानसे मोराजी भवनमें आगई। यहाँ आने पर सब व्यवस्था ठीक हो गई। यह बात आश्विन सुदी ६ सं. १६८० की है।
कई कारणोंसे श्री करोडीमल्लजीने पाठशालाके मन्त्री पदसे स्तीफा दे दिया। आपके स्थानमें श्री पूर्णचन्द्रजी बजाज मन्त्री हुए। आप बहुत ही योग्य
और विशाल हृदयके मनुष्य हैं, बड़े गम्भीर हैं, गुस्सा तो आप जानते ही नहीं हैं। आपकी दुकानमें श्री पन्नालालजी बड़कुर संजाती थे, जिनकी बुद्धि बहुत ही विशाल और सूक्ष्म थी। आपके विचार कभी संकुचित नहीं रहे। आप सदा ही पाठशालाकी उन्नतिमें परामर्श देते रहते थे। और समय-समय पर स्वयं भी सहायता देते थे।
पाठशाला कोष बहुत ही कम है और व्यय ५००) मासिक है......यह देखकर अधिकारी वर्ग सदा सचिन्त रहते थे।
एक बार सिंघईजीके मन्दिरमें शास्त्र प्रवचन हुआ। उस समय मैंने पाठशालाकी व्यवस्था समाजके सामने रख दी। फलस्वरूप श्री मोदी धर्मचन्द्रजीने कहा कि यदि वर्णीजी देहातमें जैनधर्मका प्रचार करें तो मैं सौ रुपया मासिक पाठशालाको देने लगें। मैंने भ्रमण स्वीकार किया और सौ रुपया मासिक मिलने लगा। इसी प्रकार श्रीयुक्त कमरयाजीने कहा कि यदि पण्डित दयाचन्द्रजी हमको दोपहर बाद एक घण्टा स्वाध्यायके लिये देवें तो सौ रुपया मासिक हम देवेंगे....इस प्रकार किसी तरह पाठशालाकी आर्थिक व्यवस्था सुधरी। परन्तु स्थायी आमदनीके बिना मेरी चिन्ता कम नहीं हुई।
कुछ दिनके बाद श्री मोदीजीने सहायता देना बन्द कर दिया पर कमरयाजी बराबर देते रहे। पाठशालामें क्वींस कालेजके अनुसार पठनक्रम था, इससे बड़े-बड़े आक्षेप आने लगे। परन्तु भावी अच्छा था, इससे सब विध्न
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