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असफल चोर
इस प्रकरणके लिखनेका अर्थ यह है कि जो वस्तु भाग्यमें नहीं होती वह थालीमें आने पर भी चली जाती है और जो भाग्यमें होती है वह द्वीपान्तरसे भी आ जाती है । अतः मनुष्यको उचित है कि सुख-दुखमें समताभाव धारण
करे ।
असफल चोर
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हम, बाईजी और वर्णी मोतीलालजी - तीनों श्री सिद्धक्षेत्र सोनागिरिकी वन्दनाके लिये गये। वहीं बाईजीकी सास और ननद भी आ गई। आनन्दसे यात्रा हुई। श्री चन्द्रप्रभ भगवान्के दर्शन कर सब लोग प्रमोदभावको प्राप्त हुए । यहाँ पर भट्टारकजीकी गद्दी है और प्राचीन शास्त्रोंका भण्डार भी । परन्तु वर्तमानमें जो भट्टारक हैं, उन्हें ज्ञानवृद्धिका लक्ष्य नहीं । यंत्र-मंत्रमें ही अपना काल लगाते हैं। इनका मन्दिर बहुत उत्तम है । उसमें ये प्रतिदिन भक्तिभावसे पूजन पाठ करते हैं। स्वभावके सरल तथा दयालु हैं। इनकी धर्मशालामें निवास करनेवाले यात्रियोंको सब प्रकारकी सुविधा रहती है। दो दिन आनन्दसे यात्रा हुई। तीसरे दिन सिमरासे आदमी आया और उसने समाचार दिया कि बाईजी आपके घरमें चोरी हो गई। सुनकर बाईजीकी सास और ननद रोने लगीं, पर बाईजीके चेहरे पर शोकका एक भी चिह्न दृष्टिगोचर नहीं हुआ । उन्होंने समझाया कि अब रोनेसे क्या लाभ ? जो होना था सो हो गया । अब तो पाँच दिन बाद ही घर जावेंगे।
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आदमीने बहुत कुछ चलनेका आग्रह किया और कहा कि दरोगा साहब ने कहा है कि बाईजीको शीघ्र लाना । हम प्रयत्नपूर्वक चोरीका पता लगानेको तैयार हैं, परन्तु हमें मालूम पड़ना चाहिये कि क्या-क्या सामान चोरी गया है ? बाईजीने आदमीसे कहा- अब जाओ और दरोगा साहबसे कहो कि - चोरी तो हो ही गई। अब तीर्थयात्रासे क्यों वंचित रहें ? धर्मसे संसारका बन्धन छूट जाता है, फिर यह धन तो पर पदार्थ है । इसकी मूर्च्छासे ही तो हमारी यह गति हो रही है। यदि आज हमारे परिग्रह न होता तो चोर क्या चुरा ले जाते ? यह इतनी बला है कि बेचारे चोर यदि पकड़े गये तो कारागारकी यातनाएँ भोगेंगे और नहीं पकड़े गये तो सुखसे नहीं खा सकेंगे। प्रथम तो निरन्तर शंकित रहेंगे कि कोई जान न जावे । बेचने जावेंगे तो लेनेवाला आधे दाममें लेवेगा 1 जितने चोर होवेंगे वे बाँटते समय आपसमें लड़ेंगे। लेनेवाला निरन्तर भयभीत रहेगा कि कोई यह न जान लेवे कि यह चोरीका माल लेता है । यदि दैवयोगसे
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