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पञ्चोंका दरबार
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सिंघईको बुलानेके लिये गया था वह आकर पञ्च लोगोंसे कहने लगा कि प्यारेलाल सिंघईने कहा है- 'हम ऐसी अन्यायकी पञ्चायतमें शामिल नहीं होना चाहते ।.... यह सुनकर पञ्च लोगोंकी तेवरी बदल गई और सब एक मुखसे कहने लगे कि प्यारेलालके साथ व्यवहार करना उचित नहीं।' मैंने कहा- 'आवेगमें आकर उसने कह दिया होगा, माफ किया जावे। अथवा एक बार फिरसे बुलाया जावे। यदि इस बार न आवें तो जो आपको उचित मालूम हो, करना ।' फिर आदमी भेजा गया। मैंने बाहर जाकर उससे कह दिया कि जाकर सिंघईजी से बोलो - 'यदि पञ्चोंमें शामिल न होओगे तो जातिच्युत कर दिये जाओगे। वह आदमी प्यारेलालजीके घर गया और जीभर उनसे बोला कि पञ्च लोग आपसे सख्त नाराज हैं, आपको बुलाया, आप नहीं पहुँचे, इसकी कोई बात नहीं । परन्तु यह कहना कि अन्यायकी पञ्चायत है, क्या तुम्हें उचित था ? प्यारेलाल शपथ खाने लगे कि मेरे घर तो कोई आया ही नहीं । यह बात किसने पैदा की ? अस्तु, जो हुआ सो ठीक है, शीघ्र चलो। इसके बाद प्यारेलालजी वहाँ पहुँच गये, पञ्चोंने खूब डाँटा । वह कुछ कहनेको हुए कि इतनेमें वह आदमी, जो कि बुलानेके लिये गया था, बोल उठा - 'अच्छा आपने नहीं कहा था कि हम पञ्चायतमें नहीं जाते। वहाँ गुटबन्दी करके अन्यायपूर्ण पञ्चायत कर रहे हैं ?' प्योलालजीको बहुत ही शर्मिन्दा होना पड़ा । पञ्चोंने कहा- 'रघुनाथ मोदीके विषयमें आपकी क्या सम्मति है ?' उन्होंने कहा - 'पञ्च लोग जो फैसला देवेंगे वह हमें शिरसा मान्य है । यदि पञ्च महाशय उनके यहाँ कल ही भोजन करनेके लिए प्रस्तुत हों तो मैं भी आप लोगों में सम्मिलित रहूँगा, परन्तु अब महीनों टालना उचित नहीं ।'
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हम मनमें बहुत हर्षित हुए। अब पञ्चोंने मिलकर यह फैसला कर दिया कि 'दो सौ पचास परवार सभाको, दो सौ पचास गोलापूर्व सभाको, दो सौ पचास गोलालारे सभाको, दो सौ पचास नैनागिर क्षेत्रको, दस हजार विद्यालयको तथा दो पंगत यदि रघुनाथ मोदी सहर्ष स्वीकार करें तो कल ही पंगत लेकर जातिमें मिला लिया जावे और दण्डका रुपया नकद लिया जावे एवं प्रातःकाल ही पंगत हो जावे, फिर कभी पञ्च जुड़नेकी आवश्यकता नहीं ।' इस फैसलेको सुनकर रघुनाथ मोदी और उनके भाई नारायणदासजी मोदी पुलकित बदन हो गये। उन्होंने उसी समय ग्यारह हजार लाकर पञ्चोंके समक्ष रख दिये। पञ्चोंने मिलकर रघुनाथ मोदीको मय कुटुम्ब गले लगाया
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