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मेरी जीवनगाथा
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एक न सुनी। मनमें खुशी हुई कि अच्छा हुआ विधन टला। परन्तु फिर विचार आया कि रघुनाथ मोदीका निर्वाह तो इन्हींमें होगा, अन्य लोगोंके मिला लेनेसे क्या होगा ? इतने में ही एक महाशय बोले- क्या यह समय सोनेका है ? निद्रा भंग हो गई। पञ्च लोग परस्पर विचार में निमग्न थे ही। अन्तमें यह तय किया कि रघुनाथ मोदीको मिला लिया जावे। इसीके बीच पं. बाबूलालजी कटनी बोल उठे कि पहले पटिया बुलाया जाय और उसके द्वारा इनके गोत्रोंकी परीक्षा की जावे। यदि गोत्र ठीक निकलें तो मिलानेमें कौन-सी आपत्ति है ?'
इनकी बात सकल पञ्चोंने स्वीकृत की। एक महाशय बोले कि 'सिंघई प्यारेलालको बुलाया जावे।' मैं बड़ा चिन्तित हुआ कि हे भगवन् ! क्या होने-वाला है ? अन्तमें जो व्यक्ति बुलानेके लिए भेजा गया, मेरे साथ उसका परिचय था। मैं पेशाबके बहाने बाहर गया और उससे कह आया कि 'तू सिंघईके घर न जाना बीचसे ही लौट आना और पञ्चोंको उत्तर देना कि सिंघई प्यारेलालजीने कहा है कि हम ऐसे अन्याय करनेवाले पञ्चोंमें नहीं आना चाहते।' इतना कहकर वह तो सिंघईजीके घरकी ओर गया और मैं पञ्च लोगोंमें शामिल हो गया।
इतनेमें श्री प्यारेलालजी मलैया बोले कि-'महानुभाव ! आज हमारी जातिकी संख्या चौदह लाख मात्र रह गई। यदि इसी तरहकी पद्धति आप लोगोंकी रही तो क्या होगा ? सो कुछ समझमें नहीं आता, अतः इसमें विलम्ब करनेकी कोई बात नहीं। रघुनाथ मोदीको जातिमें मिलाया जावे और दण्डके एवजमें इनसे २ पंगतें ली जावें तथा जातिके बालकोंके पढ़नेके लिये एक विद्यालय स्थापित कराया जावे।' इस पर बहुतसे महानुभावोंने सम्मति दी और पं. मूलचन्द्रजीको भी अत्यन्त हर्ष हुआ। वह बोले-'केवल विद्यालयसे कुछ न होगा, साथमें एक छात्रावास भी होना आवश्यक है। यह प्रान्त विद्यासे पिछड़ा है। यद्यपि कटनीमें विद्यालय है। फिर भी जो अत्यन्त गरीब हैं उनका बाहर जाना अति कठिन है। उनके माँ-बाप उन्हें कटनी तक भेजनेमें भी असमर्थ हैं।'
मूलचन्द्रजीकी बात सबने स्वीकार की। अनन्तर रघुनाथ मोदीसे पूछा गया कि क्या आपको स्वीकार है ? उन्होंने कहा-मैं स्वीकार आदि बात तो नहीं जानता, दस हजार रुपया दे सकता हूँ। उनसे चाहे आप विद्यालय बनवावें, चाहे छात्रावास बनवावें।
सब लोग यह बात कर ही रहे थे कि इतनेमें जो आदमी प्यारेलाल
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