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मेरी जीवनगाथा
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जातिच्युत हो जायेंगे।
विचार तो किया पर जब कुछ उपाय न सूझा तो अन्तमें यह निर्णय किया कि इनकी जातिका पटिया-गोत्रकी परम्परा जाननेवाला बुलाया जावे। बरुआसागरके पास मड़िया गाँव है। वहाँसे पटिया बुलाया गया और उससे इनकी वंशावली पूछी गई। उसने कण्ठस्थकी तरह इनकी वंशावली बता दी। एक आदि गोत्रका अन्तर पड़ा वह सुधार दिया गया।
चार दिन बाद चिट्ठी आ गई कि अमुक दिन बड़गाँवमें जलविहार है। दो पंगतें होंगी। आप लोग गोट सहित पधारें। इसमें रघुनाथ मोदीकी पंचायत भी होगी। हमने सागरसे प्यारेलाल मलैया, पं. मुन्नालालजी तथा पं. मूलचन्द्रजी सुपरिन्टेन्डेन्टको भी बुला लिया। कटनीसे पण्डित बाबूलालजी, श्री खुशालचन्द्रजी गोलालारे, श्रीमान् बाबा गोकुलचन्द्रजी, श्री अमरचन्द्र तथा अन्य त्यागीगण, रीठीसे लक्ष्मण सिंघई और बाकलके कई भाई इस प्रकार हम लोग बड़गाँव पहुँच गये। खेदके साथ लिखना पड़ता है कि हमें जो चिट्ठी दी गई थी वह एक दिन विलम्बसे दी गई थी, अतः हम दूसरे दिन तब पहुँच सके जबकि जलविहार समाप्त हो चुका था, विमान मण्डपमें जा रहा था और वहाँ पहुँचनेके बाद ही लोग अपने-अपने घर जानेके उद्यममें लग जाते। केवल मण्डप और जिनेन्द्रदेव ही वहाँ रह जाते।
उस समय मेरे मनमें एक अनोखी सूझ उठी। मैंने गानेवालेसे कहा कि 'तू पेटके दर्दका बहाना कर डेरा पर चला जा। तेरा जो ठहरा होगा वह मैं दूंगा।' वह चला गया, अतः विमान पन्द्रह मिनटमें ही मंडपमें पहुँच गया। मैंने झट शास्त्रप्रवचनका प्रबन्ध कर पं. मूलचन्द्रजीको बैठा दिया और धीरेसे कह दिया कि आप घण्टामें ही पूर्ण कर देना तथा रघुनाथ मोदीसे कहा कि यदि आप जातिमें मिलना चाहते हैं तो कुटुम्ब सहित मण्डपके सामने खड़े हो जाओ और आप तथा नारायण दोनों ही पञ्चोंके समक्ष हाथ जोड़कर कहो कि या तो हमें जातिमें मिलाओ या एकदम पृथक् कर जाओ। हम बहुत दुःखी हैं। हमारी व्यथा पर आप एक रात्रिका समय देनेका कष्ट करें। रघुनाथ मोदीने हमारी बात स्वीकार कर ली और शास्त्र प्रवचनके बाद जब पञ्च लोग जानेको प्रस्तुत हुए, तब रघुनाथ मोदीने बड़ी विनयके साथ प्रार्थना की, जिससे सब लोग रुक गये और सबने यह प्रतिज्ञा की कि रघुनाथ मोदीका निर्णय करके ही आज मण्डप त्यागेंगे।
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