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पञ्चोंका दरबार
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कि आज ५० घरके ही अन्दाज रहे होंगे। यह तो इनके पिताकी बात रही, पर इनमें जो रघुनाथदास नारायणदास मोदी हैं वह भद्र प्रकृति हैं। इसकी यह भावना हुई कि मैं अपराधी हूँ नहीं, अतः जातिबाह्य रहकर धर्मकार्योंसे वंचित रहना अच्छा नहीं। इसीलिए यह कई ग्रामका जमींदार होकर भी दौड़-धूप द्वारा जातिमें मिलानेकी चेष्टा कर रहा है। यह भी इसका भाव है कि मैं एक मन्दिर बनवाकर पंचकल्याणक प्रतिष्ठा कराऊँ तथा ऐसा शुभ अवसर मुझे कब प्राप्त हो कि मेरे घरपर विरादरीके मनुष्योंके भोजन हो और पात्रादिकोंको आहारदान देकर निज जीवन सफल करूँ.....। यह इनकी कथा है। आशा है आप पञ्च लोग इसका गम्भीर दृष्टिसे न्याय करेंगे। श्री सिं. प्यारेलालजीने जो कहा है वह ठीक नहीं है, क्योंकि उनकी आयु ४० वर्षकी ही है और मैं जो कह रहा हूँ .उसे ५० वर्ष हो गये। मुझे रघुनाथसे कुछ द्रव्य तो लेना नहीं और न मुझे इनके यहाँ भोजन करना है, अतः मिथ्या भाषण कर पातकी नहीं बनना चाहता।
सबके लिये वृद्ध बाबाकी कथामें सत्यताका परिचय हुआ। परन्तु प्यारेलाल सिंघई टससे मस नहीं हुए। अन्तमें पञ्च लोग उठने लगे, तो मैंने कहा कि यह ठीक नहीं, कुछ निर्णय किये बिना उठ जाना न्यायके विरुद्ध है।
वहाँपर एक गोलालारे बैठे थे। उन्होंने कहा कि 'मैं जल-विहार करता हूँ, उसमें प्रान्त भरके सब गोलालारे बुलाये जावें तथा परवार और गोलापूर्व भी बुलाये जावें। चिट्ठीमें यह भी लिखाया जावे कि इस उत्सवमें रघुनाथ मोदीको शुद्ध करनेका विचार होगा, अतः सब भाइयोंको अवश्य आना चाहिए और इनके विषयमें जिसे जो भी ज्ञात हो वह सामग्री साथ लाना चाहिए। यह बात सबको पसन्द आई। परन्तु जिसके यहाँ जल-विहार होना था वह बहुत गरीब था। उसने केवल दयाके वेगमें जलयात्रा स्वीकार कर ली थी, अतः मैंने रघुनाथ मोदीसे कहा कि 'आप इसे तीन सौ रुपया दे देवें।' उन्होंने ननु नच किये बिना तीन सौ रुपये दे दिये। इसके बाद मैंने कहा कि 'तुम भी दो पंगतोंका कच्चा सामान तैयार रखना। सम्भव है तुम्हारी कामना सफल हो जाय ।' यह कहकर हम लोग कटनी चले गये।
कटनी के पण्डित बाबूलालजी प्रयत्नशील व्यक्ति थे। इनके साथ परस्पर विचार किया कि चाहे कुछ भी हो, परन्तु इन लोगोंको जातिमें मिला लेनेका पूर्ण प्रयत्न करना है। यदि ये लोग कुछ दिन और न मिलाये गये तो
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