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मेरी जीवनगाथा
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इस आज्ञाके सुनते ही रघुनाथदास नारायणदास मोदीने कहा-'हमें स्वीकार है, किन्तु हमारी यह नम्र प्रार्थना है कि हमें आज्ञा दी जावे कि हम निर्णय करनेके लिए पञ्चोंको कब एकत्रित करें।' इतनेमें एक वृद्ध पञ्चने अन्य पञ्च महाशयोंसे कहा-'आपने जो निर्णय किया है वह ठीक है। परन्तु यह पञ्चायत गोलालारे पञ्चोंके समक्ष होना चाहिये, अन्यथा उनके दस हजार रुपये भी जावेंगे और जातिमें भी नहीं मिल सकेंगे। आपमें इतनी उदारता नहीं कि जिससे उनके बाल-बच्चोंके विवाह आदिकी सुविधा हो सके। आप लोगोंके हृदय अत्यन्त संकीर्ण हो चुके हैं। आपने जातिके लिए मोक्षमार्ग का अवलम्बन कर रक्खा है। आप संवर जानते हैं, अतः आसवको रोक दिया है। जो है उनकी काल पाकर निर्जरा अवश्यंभावी है, अतः कुछ कालमें जातिका मोक्ष होना अनिवार्य है। विशेष कहनेसे आप लोग कुपित हो जावेंगे। बस, उन्हें आज्ञा दीजिये कि शुद्धिके लिए अपनी जातिके पञ्चोंको बुलावें। जो निर्णय पञ्च लोग देवेंगे, हमें अर्थात् परवार और गोलापूर्वोको मान्य होगा। यह सुनकर रघुनाथदास नारायणदास मोदीको बहुत खेद हुआ, क्योंकि वह जिस कार्यके लिए आये थे वह नहीं हुआ।
मैं भी वहीं पर बैठा था। मैंने कहा-'उदास मत होओ, प्रयत्न करो, अवश्य ही सफल होगे।' पण्डित मूलचन्द्रजी बिलौआ, जो कि जातिके गोलालारे हैं, को भी हार्दिक वेदना हुई; क्योंकि उनकी भी यही इच्छा थी कि इतने बन्धुगण अकारण ही जातिसे च्युत क्यों रहें ? मैंने उन सबको समझाया कि 'बुड्ढे पञ्चने जो कहा है वह बिल्कुल ठीक कहा है। मान लो परवारों या गोलापूर्वोने तुम्हें शुद्ध कर भी लिया तो भी जातिके बिना तुम्हारा निर्वाह न होगा। विवाह आदि तो तुम्हारी जातिवालोंके ही साथ हो सकेंगे, अतः तुम घर जाओ। आठ दिन बाद हम तुम्हारे ग्राममें आकर इस बातकी मीमांसा करेंगे। चिन्ता करनेकी बात नहीं। वीर प्रभुकी कृपासे सब अच्छा ही होगा। पञ्चकल्याणक देखकर वे अपने घर चले गये और मैं श्रीमान् बाबा गोकुलचन्द्रजीके साथ कुण्डलपुर चला गया।
श्रीमान् बाबा गोकुलचन्द्रजी बाबा गोकुलचन्द्रजी एक अद्वितीय त्यागी थे। आप ही के उद्योगसे इन्दौरमें उदासीनाश्रमकी स्थापना हुई थी। जब आप इन्दौर गये और जनताके समक्ष त्यागियोंकी वर्तमान दशाका चित्र खींचा तब श्रीमान् सर सेठ हुकमचन्द्रजी
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