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शंकित संसार
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एक सेर होगा। उनकी कीमत कूंजड़ी एक रुपया माँगती थी । उन्होंने बारह आना तक कहा। मेरा मन भी उन शरीफोंके लिये ललचाया, परन्तु जब एक महाशय ले रहे थे तब मेरा कुछ बोलना सभ्यताके विरुद्ध होता । अन्तमें उन्होंने चौदह आना तक मूल्य देना कहा, परन्तु कूंजड़ीने कहा कि एक रुपयेसे कम न लूँगी, आप व्यर्थ समय मत खोइये । आखिर जब वे निराश होकर जाने लगे तब मैंने शीघ्र ही एक रुपया कूंजड़ीके हाथ दे दिया और वह शरीफा मेरे झोलेमें डालनेको उद्यत हुई कि वही महाशय पुनः लौटकर कहने लगे- 'अच्छा पाँच रुपया ले लो।' उसने कहा - 'नहीं अब तो वे बिक गये, लेनेवालेसे आप बात करिये।' उन महाशयने दसका नोट कूंजड़ीको बतलाया । वह बोली'महाशय आप महाजन हैं, क्या व्यापारकी यही नीति है ?' अन्तमें उन्होंने कहा- 'अच्छा सौ रुपये ले लो, परन्तु शरीफा हम ही को दो ।' कूंजड़ी बोली- 'आप महाजन होकर इस तरहकी बात करते हो। क्या इसी तरह की धोंखेबाजीसे पैसा पैदा करते हो ?' भडुवेका भडुवा ! उस समय यह मुँह कहाँ चला गया था । उस समय तो एक रुपया देनेको बन्द था, अब सौ रुपया दिखलाता है। लानत है तेरे रुपयोंको, तु मनुष्य नहीं, हट मेरी दुकानसे ।'
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मैंने कहा - 'इतनी बेइज्जती करना अच्छा नहीं । आखिर ये महाजन हैं और तुम शाक बेचनेवाली ही हो ।' वह बोली- यह शिष्टताका व्यवहार जाने दीजिये । न्यायसे बात करिये। हम भी मनुष्य हैं, पशु नहीं। कौनसी बेइज्जती इसकी हुई । बल्कि इसको शरम आनी चाहिये । यदि मैं इस क्षुद्र मनुष्यके लोभमें आ जाती तो आप ही कहते कि ये शाक बेचनेवाले बड़े बेईमान होते हैं, क्योंकि ये लोभमें आकर जबान पलट जाते हैं। मैं आपको विश्वास दिलाती हूँ कि इस कालमें छोटी जातिवाले और छोटे धन्धेवाले पापके कार्योंसे भयभीत रहते हैं, परन्तु ये बड़े लोग पापोंसे नहीं डरते । ये लोग जो दान करते हैं वह पापोंको छिपानेके लिये ही करते हैं। मैं इन लोगोंके लोभकी कहानी सुनाऊँ तो आपको शर्मिन्दा होना पड़ेगा। आपने स्वयं इज्जत बचानेके ख्यालसे एक औरतके दोषको छिपाया । समझे या नहीं ? अन्यथा सुनो, कल ही की तो बात है- मेरी दूकानसे जो तीसरे नम्बरकी दूकान है वहाँ पर एक स्त्री नींबू खरीद रही थी । सौ तोला सोना उसके बदन पर था। दो पैसाके नींबू उसने खरीदे - पाँच आये। उन्हें छाँटने लगी और छाँटते-छाँटते उसने पाँच नींबू बगलमें चोली दामनमें छिपा लिये। आपने यह किस्सा देखा तो आपने उस
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