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पाठशालाकी सहायताके लिए
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ग्राम, जो कि बण्डा तहसीलमें है, पहुँचा। वहाँ श्रीजीका विमानोत्सव था। दो हजार मनुष्योंकी भीड़ थी। श्रीयुत कमलापतिजी सेठके आग्रहसे मुझे भी जानेका अवसर आया। वहाँ की सामाजिक व्यवस्था देखकर मैं आश्चर्यान्वित हो गया। वहाँ पर चालीस घर जैनियोंके हैं। सब गोलापूर्व वंशके हैं। सभीके परस्पर प्रेम हैं। एक मन्दिर है जो जमीनसे पाँच हाथ की कुरसीपर बीस हाथकी ऊँचाई लेकर बनाया गया है। उसकी उन्नत शिखर दूरसे ही दृष्टिगत होने लगती है। मन्दिर के चारों तरफ एक कोट है, एक धर्मशाला भी है, जिसमें त्यागी आदि धर्मात्मा जन ठहराये जाते हैं। मैं सेठ कमलापतिजीके यहाँ ठहरा।
___मैंने कहा-'भाई ! दो हजार आदमियोंकी पंगतका प्रबन्ध कैसे होगा ?' आपने कहा-'यहाँका यह नियम है कि पंगतमें जितना आटा या बेसन लगता है वह सब घरवाले पीसकर देते हैं। अभी जाड़ेके दिन हैं, अतः सात दिनके अन्दरका ही आटा है। पानी सब जैनियोंकी औरतें कुएँसे लाती हैं। एक ही बारमें चालीस खेप पानी आ जाता है। पूड़ी बनानेके लिए प्रत्येक घरसे एक बेलनेवाली आती है। वह अपना बेलन और उरसा साथ लाती है। मर्द बारी-बारीसे निकाल देते हैं, मिठाई बनानेवाले भी कई व्यक्ति हैं, वे बना देते हैं। इस प्रकार ताजा भोजन आगन्तुकोंको मिलता है। भोजन दो बार होता है। इसके सिवाय प्रातःकाल बालकोंको कलेवा (नास्ता) भी दिया जाता है। हमारे यहाँ ढीमरसे पानी नहीं भराते। यह तो धार्मिक कार्य है, विवाह कार्यों में भी ढीमरसे पानी नहीं भराते। यह पंगतकी व्यवस्था है। ग्रामके लोगोंमें इतना प्रेम है कि जिसके यहाँ उत्सव होता है, वह अव्यग्र रहता है। सब प्रकारका प्रबन्ध यहाँकी आम जनता करती है।'
___ मुझे सेठजीके मुखसे पंगतकी व्यवस्था सुनकर बहुत ही आनन्द हुआ। प्रातःकाल गाजे-बाजेके साथ द्रव्य लाते थे। मंगलपाठ पढ़ते हुए जल भरनेके लिये जाते थे। जब श्रीजीका अभिषेक होता था, तब सुमेरु पर्वतके ऊपर क्षीरसागरजलसे इन्द्र ही मानों अभिषेक कर रहे हों...यह दृश्य सामने आ जाता था। जिस समय गान-तानके साथ पूजन होती थी, सहस्रों नर-नारी प्रमोदसे गद्गद हो उठते थे। एक-एक चौपाई पन्द्रह-पन्द्रह मिनटमें पूरी होती थी। मैंने तो अपनी पर्यायमें ऐसी पूजन नहीं देखी। पूजनके बाद गानेवाला भैरवीमें श्रीजीका स्तवन करता था। यहाँ पर एक भायजी रामलालजी जासोड़ावाले आये थे। आपका गला इतना सुन्दर और सुरीला था कि लोग उनका गान
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