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बाबा शिवलालजी और बाबा दौलतरामजी
व्याख्यानमें स्वर्गीय पं. मौजीलालजी, स्वर्गीय नाथूरामजी कठरया, स्व. पन्नालालजी बड़कुर, स्व. नन्हूमलजी सर्राफ, करोड़ीमलजी सर्राफ तथा लम्पूलालजी मोदी आदि अच्छे-अच्छे श्रोता उपस्थित होते थे । इनके साथ मुझे सागर जानेका अवसर मिला। इनका प्रवचन सुननेका भी मौका मिला, इनको मोक्षमार्ग कण्ठस्थ था और इनके तर्कसे अच्छे-अच्छे घबड़ा जाते थे । मेरा इनके साथ अतिस्नेह हो गया। सागरमें कुछ दिन ठहरकर मैं श्रीनैनागिरि क्षेत्रकी वन्दनाके लिए चला गया । वहाँ पर श्रीवर्णी दौलतरामजीका स्वर्गवास हो गया था । इनके गुरु बाबा शिवलालजी थे जो सिरसीग्रामके रहनेवाले थे। वे बड़े तपस्वी थे । इनकी सामायिक ६ घडीकी होती थी ।
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एक बार सामायिक करते समय इनके ऊपर चीटीं चढ़ गई, परन्तु वे अपने ध्यानसे चलायमान नहीं हुए । इनको निमित्तज्ञान भी अच्छा था। एक बार ये बमराना गये जो कि महरौनी तहसील और ललितपुर जिलेमें है। वहाँ ये श्रीब्रजलाल चन्द्रभानुजी सेठके यहाँ ठहरे थे। मैं भी उसी समय वहाँपर गया था । श्रीसेठजीके यहाँ जलविहार होना था । श्रीसवाई सिंघई धर्मदासजी सादूमलवाले उसकी पत्रिका लिख रहे थे। पत्रिकाको देख कर बाबाजीने कहा—'ब्रजलाल ! यह धर्मोत्सव इस मिति पर नहीं होगा । तुम्हें ४ दिनके बाद इष्ट वियोग होगा। बाबाजीकी बात सुनकर सब लोग दुःखी हो गये । अन्तमें ४ दिनके बाद श्रीसेत लक्ष्मीचन्द्रजीके पुत्रका स्वर्गवास हो गया। इसी प्रकार एक दिन श्रीब्रजलालजीका दामाद और उनके लड़केका साला मन्दिरकी दालान में लेटे हुए परस्पर बातचीत कर रहे थे । उन्हें देख बाबाजीने ब्रजलाल सेठको बुलाकर कहा कि 'तुम्हारा दामाद ६ मासमें और तुम्हारे लड़केका साला १ सालमें मृत्युका ग्रास होगा।' सो ऐसा ही हुआ ।
उन्हीं बाबाजीने एक दिन मन्दिर जाते समय सेठ ब्रजलालकी माँसे पूछा कि चन्द्रभानु नहीं दिखता ? माँ ने कहा- महाराज ! उसे तो पन्द्रहवीं लंघन है।' महाराजने कहा- 'हम देखनेके लिये चलते हैं।' देखकर कहा - 'यह तो निरोग हो गया, इसका रोग पच गया, इसे आज ही पथ्य देना चाहिए और पथ्यमें आमकी कड़ी तथा पुराने चावलका भात देना चाहिये। जब इसे पथ्य हो जावेगा तभी मैं भोजन करूँगा।' फिर क्या था ? पथ्यकी तैयारी होने लगी । वैद्य लोगोंने कहा - 'अच्छी बला आई, कढ़ीका पथ्य सन्निपातका कारण होगा और अभी तो २ लंघनकी कमी है, इत्यादि । परन्तु बाबाजीके तेजके सामने
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