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मेरी जीवनगाथा
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न हो सका। इतनेमें बिहारी मुसहड़ वहाँसे जा रहा था। उसने मेरी वेदना देखकर कहा कि यह इतना वेचैन क्यों है ? लोगोंने कहा कि इसकी पीठमें अदृष्ट फोड़ा हो गया है और वह बढ़ते-बढ़ते आंवला बराबर हो गया है, इसीसे रात्रि-दिन बेचैन रहता है। उसने कहा-आप लोग औषधि नहीं जानते ?' लोगोंने कहा-'हमने तो बीसों दवाइयाँ की, पर किसीने आराम नहीं पहुँचाया। तब बिहारी बोला-'अच्छा आप चिन्ता छोड़ देवें, यदि परमात्माकी अनुकम्पा हुई तब यह आज ही अच्छा हो जावेगा। अच्छा जाता हूँ और जड़ी लाता हूँ।' वह गया और १५ मिनटमें औषधि लेकर आ गया। उसने दवाईको पीस कर कहा कि इसे बाँध दो। यदि इसका उदय अच्छा हुआ तो प्रातः काल तक फोड़ा बैठ जायगा या पक कर फूट जायगा। लोग हँसने लगे। तब बिहारी बोला कि हँसनेकी आवश्यकता नहीं, 'हाथके कंगनको आरसीकी क्या आवश्यकता ?'
सायंकालके ५ बजे थे। मुझसे उसने कहा कि कुछ खाना हो तो खा लो, पानी पीलो, फिर इस दवाईको बाँध कर सो जाओ, १२ घण्टे नींद आवेगी। मैं हँस पड़ा और कुछ मिष्ठान्न खाकर दवाईके लगाते ही दाहकी वेदना शान्त हो गई और एकदम निद्रा आ गई। आठ दिनसे निद्रा न आई थी, इससे एकदम सो गया और १२ घण्टेके बाद निद्रा भंग हुई। पीठ पर हाथ रक्खा तो फोड़ा नदारत । मैंने उसी समय पण्डितजीको बुलाया और उनसे कहा कि 'देखिये, मेरी पीठमें क्या फोडा है ?' उन्होंने कहा-'नहीं है। फिर मैं आनन्दसे शौचको गया। वहाँसे आकर स्नानादिसे निवृत्त हो नैयायिकजीसे पाठ पढ़ने लगा। ग्रामके लोग आश्चर्यमें पड़कर कहने लगे कि देखो, भारतवर्षमें अब भी ऐसे-ऐसे जानकार है। इनका जो फोड़ा बड़े-बड़े वैद्योंके द्वारा भी असाध्य कह दिया गया था उसे बिहारी मुसहड़ने एक बारकी औषधमें ही निरोग कर दिया।
४ बजे बिहारी मुसहड़ फिर आया। मैंने उसे बहुत ही धन्यवाद दिया और १० का नोट देने लगा, परन्तु उसने नहीं लिया। मैंने उससे कहा कि यह औषधि हमें बता दो, उसने एकदम निषेध कर दिया और एक लम्बा भाषण दे डाला। उसने कहा कि बतानेमें कोई हानि नहीं, परन्तु मुझे विश्वास नहीं कि आप इसे द्रव्योपार्जनका जरिया न बना लेवेंगे, क्योंकि आप लोगोंने अपनी आवश्यकताओंको इतना बढ़ा लिया है कि यद्वा तद्वा धन पैदा करनेसे आप लोग नहीं चूकते। मुझे अच्छी तरह स्मरण है कि इसी चकौती ग्राममें पहले कोई पण्डित नौकरी नहीं करता था। द्रव्य लेकर विद्या देना पाप समझते थे,
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