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नीच जाति पर उच्च विचार
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परिणामोंकी स्वच्छताका फल है । इतनेमें अनुग्रह झाने, जिसने कि उसके साथ दुश्चरित्रका व्यवहार किया था, सबके समक्ष आत्मीय अपराधोंकी क्षमा माँगी और भविष्य में इस पापके न करनेकी प्रतिज्ञा की ।
इसके बाद द्रौपदीबाईने जगन्नाथ स्वामीकी यात्राके लिये जोगिया स्टेशन जिला दरभंगासे प्रस्थान किया । यहाँ तक तो हमारा देखा दृश्य है । इसके बाद जो महाशय उनके साथ गये थे उन्होंने यात्रासे वापिस आकर हमसे जो कहा वह पाठकोंके अवलोकनार्थ ज्यों-का-त्यों यहाँ लिखते हैं-प्रथम तो द्रौपदीबाई कलकत्ता पहुँची और कालीके दर्शन करनेके लिए काली मन्दिर गई, परन्तु वहाँका रक्तपात देख दर्शनोंके बिना ही वापिस लौट आई । पश्चात् जगन्नाथपुरीकी यात्राके लिये गई और उसके अनन्तर वैद्यनाथजी आ गई । जिस समय स्वच्छ वस्त्र पहिन कर तथा हाथमें जलपात्र लेकर श्रीवैद्यनाथजीके ऊपर जलधारा देनेका प्रयत्न करने लगी उस समय वहाँके पंडोंने कहा- 'आप जल तो चढ़ाती हैं पर दान-दक्षिणा क्या देंगी ?' उसने कहा- 'दानकी कथा छोड़ो, हम तो जल चढ़ाकर शिवलोक चले जावेंगे।' पंडोंको आश्चर्य हुआ कि यह कहाँकी पगली आई ? बहुत कहाँ तक लिखें, जिस समय उसने 'ओं शिवाय नमः' कह महादेवके ऊपर जलधारा दी उसी समय उसके प्राण पखेरू उड़ गये और सहस्रों नर-नारियोंके गुणगानमें सारा मन्दिर गूँज उठा।
इस कथानकके लिखनेका तात्पर्य यह है कि अधम-से-अधम प्राणी भी परिणामोंकी निर्मलतासे देवगति प्राप्त कर सकता है।
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नीच जाति पर उच्च विचार
अब मैं आपको यह दिखाना चाहता हूँ कि मणि, मन्त्र और औषधिमें अचिन्त्य शक्ति है। इसी चकौती ग्राममें मेरी पीठमें अदृष्ट फोड़ा हो गया, रात-दिन दाह होने लगी, एक मिनटको भी चैन नहीं पड़ती थी, निद्रादेवी पलायमान हो गई, क्षुधा तृषाकी वेदना चली गई, 'हे भगवन्' के सिवाय कुछ नहीं उच्चारण होता था । रात्रि-दिन वेदनामें ही समय जाता था। मोहल्ला भर मेरी वेदनासे दुःखी हो गया। कोई कहता कि दरभंगा अस्पतालमें ले चलो, कोई कहता कि औषधि तो खाता नहीं, अस्पतालमें ले जाकर क्या करोगे ? कोई कहता कि दुर्गा सप्तशतीका पाठ कराओ, कोई कहता कि विष्णुसहस्रनामका पाठ कराओ और कोई कहता कि चिन्ता मत करो, कर्मका विपाक है, अपने आप शान्त हो जावेगा। बहुत कुछ तर्क-वितर्क होने पर भी अन्तमें कुछ स्थिर
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