________________
मेरी जीवनगाथा
96
श्रीमालवीयजीने कहा-'अच्छा सीनेटमें यह प्रस्ताव रखिये, जो निर्णय होगा वह किया जावेगा।' सीनेटकी जिस दिन बैठक थी उस दिन शास्त्रीजी ने कहा-'पुस्तकें लेकर तुम भी देखने चलो।' मैं पुस्तकें लेकर शास्त्रीजी महाराजके पीछे-पीछे चलने लगा। बीचमें एक महाशयने, जो बहुत ही बृहत्काय एवं सुन्दर शरीर थे तथा सीनेटके भवनकी ओर जा रहे थे, मुझसे पूछा, कहाँ जा रहे हो ?' मैंने कहा-'महानुभाव ! मैं श्रीशास्त्रीजीकी आज्ञासे जैनन्यायकी पुस्तकें लेकर कमेटीमें जा रहा हूँ। आज वहाँ इस विषयपर ऊहापोह होगा। आप बोले-यद्यपि जैनधर्मके अनुकूल प्रायः बहुत मेम्बर नहीं हैं फिर भी मैं कोशिश करूँगा कि जैनागमको पठन-पाठनमें आना चाहिये, क्योंकि यह मत अनादि है तथा इस मतके अनुयायी बहुत ही सच्चरित्र होते हैं .......इस मतके माननेवालोंकी संख्या चूँकि अल्प रह गई है, इसीलिये यह सर्व-कल्याणप्रद होता हुआ भी प्रसारमें नहीं आ रहा है...........इत्यादि कहनेके बाद मुझसे कहा-'चलो।'
मैं भवन के अन्दर पहुँच गया, पुस्तकें मेज पर रख दी और मैं शास्त्रीजीकी आज्ञानुसार एक बैंच पर बैठ गया। मीटिंगकी कारवाई प्रारम्भ हुई। महाराज मालवीयजी भी उस सभामें विराजमान थे। डाक्टर गंगानाथ झा, डाक्टर भगवानदासजी साहब तथा अन्य बड़े-बड़े विद्वान् भी उस समिति में उपस्थित थे। जो महाशय मुझे मार्गमें मिले थे वे भी पहुँच गये। पहुँचते ही उन्होंने सभापति महोदयसे कहा कि 'आजकी सभामें अनेक विषयों पर विचार होना है, एक विषय जैनशास्त्रोंका भी है, “सूचीकटाहन्यायेन' सर्वप्रथम इसी विषय पर विचार हो जाना अच्छा है, क्योंकि यह विषय शीघ्र ही हो जावेगा
और यह छात्र जो कि पुस्तकें लेकर आया है चला जावेगा। चूँकि यह जैन छात्र है, अतः रात्रिको नहीं खाता। दिनको ही चले जाने में इसका भोजन नहीं चूकेगा।' पश्चात् श्रीअम्बादासजी शास्त्रीसे आपने कहा 'अच्छा, शास्त्रीजी ! आप बताइये कि प्रवेशिकामें पहले कौन-सी पुस्तक रखी जावे ?' शास्त्रीजीने न्यायदीपिका पुस्तक लेकर आपको दी। आपने उस समितिमें जो विद्वान् थे उन्हें देते हुए कहा- 'देखिये यह पुस्तक कैसी है ? क्या इसके पढ़नेसे छात्र मध्यमाके विषयोंमें प्रवेश कर सकेगा ?' पण्डित महाशयने पुस्तकको सरसरी दृष्टिसे आद्योपान्त देखा और ५ मिनटके बाद मेजपर रखते हुए कुछ अरुचि-सी प्रकट की। आपने उपस्थित महाशयोंसे पूछा-'क्या बात है? क्या पुस्तक ठीक नहीं है।' पण्डितजी बोले-'पुस्तक तो उत्तम है, इसका विषय भी प्रथमाके योग्य
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org