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देवीदास-विलास (ख) अलंकार-निरूपण
कल्पना, सौन्दर्य बोध, एवं भावप्रवणता के लिए कवि ने शब्दालंकार एवं अर्थालंकार दोनों का ही सुन्दर नियोजन किया है। जहाँ उसने अनुप्रास एवं यमक जैसे शब्दालंकारों के माध्यम से वर्ण्य-प्रसंगों को प्रस्तुत किया है, वहीं उसकी रसवतीधारा भी पाठकों को मनोमुग्ध कर देती है।
अनुप्रास
कवि ने इस अलंकार का सर्वाधिक प्रयोग किया है। इससे काव्य में अपूर्व नादात्मक सौन्दर्य की सृष्टि हुई है। नेमिनाथ के बाल-वर्णन में उसने “लाल" शब्द के प्रयोग से अनुप्रास की सुन्दर व्यञ्जना की है। यथा
"लाल लसिउ देवी कौ सुवाल लाल पाग बाँधै लाल दृग अधर अनूप लाली पान की।
लाल मनी कान लाल माल गरै मूंगन की लाल. अंग अँगा लाल कोर गिरवान की। (पंचवरन., २/१/१)
यमक
उक्त काव्य-ग्रन्थ में यमक अलंकार का भी समुचित प्रयोग हुआ है। कवि ने बैराग्य वर्णन-प्रसंग में इस अलंकार का उपयोग किया है। यथा
"जरा जोग हरे, हरे वन में निवास करे।” (पंचवरन., २/१/५) "कारे पसु बंधे बंध काजै देखि कारे भए।।” (पंचवरन., २/१/२)
यहाँ 'हरे' और 'कारे' शब्दों में यमक अलंकार है। पहले 'हरे' शब्द का अर्थ हरण करना और दूसरे 'हरे' का अर्थ है हरा-भरा। इसी प्रकार पहले ‘कारे' शब्द का अर्थ काला और दूसरे काले शब्द का अर्थ उदास है।
उपमा
उपमेय भाव को उत्कर्ष प्रदान करने के लिए कवि ने अप्रस्तुत वर्णनों के द्वारा भावों को उबुद्ध करने की अपनी अद्भुत क्षमता-शक्ति का परिचय दिया है। अपनी "बुद्धिवाउनी' रचना में उन्होंने बुद्धिमान् व्यक्ति की तुलना सूर्य और दीपक से की है। यथा
अघ अंधकार हरिवे को हंसरूप मोख कमला प्रकाशिवे कौं कमल प्रमान है।
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