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देवीदास-विलास (३/३) लछनाउली पथ
कवि की यह रचना अत्यल्प है। इसमें मात्र दो ही छप्पय-पद हैं। कवि ने इसमें महापुरुषों के शारीरिक लक्षणों एवं अन्य चमत्कारों का अच्छा वर्णन किया है।
- सर्वप्रथम इसमें २४ तीर्थंकरों के विविध लक्षणों अर्थात् चिन्हों का वर्णन किया गया है। पूर्व परम्परानुसार तीर्थंकरों के जन्म समय में दस अतिशय प्रकट होते हैं, जिनमें से “सौलक्षण्य” नामक अतिशय भी है। उसी अतिशयानुसार उनके शरीर पर १००८ लक्षणों में से उनके दाहिने पैर के अंगूठे में जो चिन्ह अंकित रहता है. उसको लाञ्छन या चिन्ह कहते हैं। जैसा कि तिलोयपण्णति में कहा गया है
जम्मं काले जस्स दु दाहिण-पायम्मि होई जो चिण्हं। ते लक्खण-पाउत्तं आगम-सुत्तेसु जिणदेहं।।
कविने शास्त्र परम्परानुसार इन चिन्हों का निरूपण किया है, जो निम्नप्रकार हैतीर्थकर-नाम एवं उनके लाञ्छन १. ऋषभदेव-(बैल) २. अजितनाथ-(हाथी) ३. सम्भवनाथ (घोड़ा) ४. अभिनन्दननाथ-(बन्दर) ५. सुमतिनाथ-(चकवा) ६. पद्मप्रभ-(कमल) ७. सुपार्श्वनाथ-(स्वस्तिक) ८. चन्द्रप्रभ-(चन्द्रमा) ९. पुष्पदन्त-(मगर) १०. शीतलनाथ-(कल्पवृक्ष) ११. श्रेयांसनाथ-(गैंडा) १२. वासुपूज्य-(भैंसा) १३. विमलनाथ-(वराह, सूकर) १४. अनन्तनाथ-(सेही) १५. धर्मनाथ-(बज्र) १६. शान्तिनाथ (मृग) १७. कुन्थुनाथ-(बकरा) १८. अरहनाथ-(मछली) १९. मल्लिनाथ-(कलश) . २०. मुनिसुव्रतनाथ- २१. नमिनाथ-(कमल)
(कछुआ) २२. नेमिनाथ-(शंख) २३. पार्श्वनाथ-(सर्प) २४. महावीर-(सिंह)। (३/४) चक्रवर्ती-विभूति-वर्णन
प्रस्तुत रचना में कुल ५१ पद्य हैं, जिनमें कवि ने चक्रवर्ती की विभूति का आकर्षक वर्णन किया हैं। उसने आचार्य जिनसेन के आदिपुराण से प्रेरणा ग्रहण कर इसकी रचना की है। इसमें चक्रवर्ती की ९ निधियों, १४ रत्नों एवं उसके अन्य वैभव का विस्तृत वर्णन किया है।
कवि ने बतलाया है कि चक्रवर्ती सम्राट के अधीन धन-धान्य से युक्त ३६ हजार देश (अर्थात् सर्वशक्ति-सम्पन्न नगर) एवं ९६ करोड़ गाँव होते हैं। इस प्रसंग . में कवि ने सक्षेप में गाँव, मटंब, खेट, कर्वट, पट्टन, द्रोणमुख, अन्तर्वीप एवं
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