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________________ ३४ देवीदास-विलास वाले राग-द्वेष, माया, मोह और काम आदि कर्मों का हरण (नाश) करने के लिए इस रंग का वर्णन किया है। हरे रंग में ऐसी शक्ति है कि वह सभी कर्मों के साथ जन्म-मरण के चक्कर का भी हरण कर लेता है। ____ अन्त में कवि ने बतलाया है, यह रंग कर्म रूपी मल का हरण तुषार के समान कर लेता है। सुपार्श्व एवं पार्श्व प्रभु इसी रंग के हैं। चन्द्रप्रभु और पुष्पदन्त श्वेतरंग के हैं। पद्मप्रभु एवं वासुपूज्य लालरंग के हैं। मुनिसुव्रत और नेमिनाथ काले रंग के और बाकी १६ तीर्थंकर स्वर्णाभ (पीत-वर्ण) हैं। __संक्षेप में कह सकते हैं कि प्रस्तुत रचना के वर्ण्य-विषय में मनोवैज्ञानिकता ऐतिहासिकता एवं प्राकृतिक सौन्दर्य की रत्नत्रयी का सुन्दर समन्वय हुआ है। (२/२) सप्त व्यसन उक्त रचना गंगोदक-छन्द में लिखी गई है। इसमें कुल ९ पद्य हैं, जिनमें सात व्यसनों की निन्दा करते हुए उनके बुरे परिणामों का वर्णन बड़ी सरल भाषाशैली में किया गया है। . कवि ने सर्वप्रथम (१) जुआ नामक व्यसन का वर्णन किया है और उदाहरणस्वरूप पंच पाण्डवों का कथानक प्रस्तुत किया है। तत्पश्चात् कवि ने (२) सुरापानप्रसंग में यादववंश के नाश एवं द्वारिका-दहन की कथा का दृष्टान्त दिया है। (३) वेश्या-वर्णन में चारुदत्त की कथा (४) चोरी-व्यसन में शिवभूति-कथा का वर्णन एवं (५) परनारी में आसक्ति रखने वाले प्रकरण में रावण का दृष्टान्त प्रस्तुत किया है। उसके बाद (६) मांसभक्षण एवं (७) शिकार-व्यसन का वर्णन किया गया है। प्रस्तुत रचना में कवि ने पौराणिक कथाओं के उदाहरण द्वारा यह व्यक्त किया है कि जब मात्र एक व्यसन को अपनाने से समृद्धशाली महापुरुष भी दर-दर की ठोकरें खाने को विवश हो गए, तब जो लोग उक्त समस्त व्यसनों को अपनाते हैं, उनकी इस लोक में ही नहीं, परलोक में भी महादुर्गति होती है। अतः विवेकीजन को चाहिए कि वह तत्काल ही समस्त व्यसनों का त्याग कर दे। (२/३) दसधा-सम्यक्त्व . कवि ने उक्त रचना में सम्यकत्व के दस भेदों का संक्षिप्त विश्लेषण किया है। जैनधर्म का मलाधार सात तत्वों एवं नव पदार्थों के प्रति श्रद्धान करना है। वहीं से मानव के विकास की प्रक्रिया का प्रारम्भ होता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003998
Book TitleDevidas Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavati Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1994
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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