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शब्दानुक्रमणिका
३४१ किन–क्यों (राग. ६।२)
कुस्मानुनी- कुष्माण्डनी (यक्षिणी)) (नेमि. कीच-कीचड़ (पद. ३१५)
___ + ८१) कीचकाद-कीचड़; गन्दगी (बुद्धि. ५०।३) कुसंभ-कुसुम्भी रंग (श्रेयांस. १६) कीधु- दृढ़ करना; स्थिर करना (पद. कूकर-कुत्ता (मारीच. १६।५)
१२।१३) कूट-कूटना (पुष्प. २८) । कीस-किस; किसे (जन्म. १९) कूटत— कूटते हुए (बुद्धि. ३८।३) कुंदकुंद- आचार्य कुन्दकुन्द (दरसन. कूलसेन–कूलसेन (राजा) (महावीर. ५२)
३७।१) कूह-अंधेरा (वीत. २१।६) कुंवरावर- कुमारावस्था (आदि. ४९) । कृतकारित—करना और करवाना (मारीच. कुक्ष-कोख (धर्मनाथ. ८४)
८।३) कुगैल- बुरा मार्ग; (बुद्धि. ५०।१) कृतवर्मा-कृतवर्मा (राजा) (विमल. ३६) कुछि- कोख (चक्र. ७।१). केत-घर, भवन (राग. १६८) कुटुम- कुटुम्ब (पद. ११५) केतकी- केतकी (पुष्प) (आदि. १५) कुठार-कुल्हाड़ी (बुद्धि २३।३) केलि- क्रीड़ा (पंच. ७।३) कुधातु - बुरी धातु (पंच. १६।१) केवरा-केवड़ा (पुष्प) (मारीच. १४।५) कुधी- दुर्बुद्धि (बुद्धि. ३०।४; सप्त. केवली-केवलज्ञानी (वीत. २५।३)
५।२) केसरि—केशर (पंचवरन. ४।३) कुण्डलपुर- कुण्डलपुर (नगर) (महावीर. केसरिया- केशर के रंग में रंगा हुआ
चावल (श्रेयांस ९) कुबार- विलम्ब (पुकार. १३।३) केहरि- सिंह (बुद्धि २४।१) कुबेर-कुबेर (यक्ष) (अरह. ६६) कैंधों- कौन; किसे (पद. ८।३) कुभिंग-आर्ष परम्परा के विपरीत (जिनांत. कोथरी-कोठरी (बुद्धि. १।१)
. २६।१) कोर-किनारा (पद. ८।३) कुभेवै–कुभेद (तीनमूढ़. १७।१) कोविद- विद्वान् (चक्र. ३०।१) कुम्भराजा-कुम्भ नामका राजा (मल्लि. कौडी- कौड़ी (सप्त. ५।१)
३७) क्रत– किया (बुद्धि ४३।२) कुमार-कुमार (यक्ष) (श्रेयांस. ६५) क्रपा-कृपा (पंच. ६२) कुलाचल- पर्वतमाला (श्रेयांस. ६८) खंडुखटुपति-छहखंड कास्वामी (चक्रती) कुलाद- संस्कारविहीन सन्तान (बुद्धि.
(मारीच. २।२) ५०।३) खंध- स्कन्ध (दरसन. १०।१) . कुलिंग-विरुद्ध आचरण वाला (जिनांत. खगपति–गरुड़ (पदि. ९)
२६।१) खटकीरा-खटमल (जीवचतु. १७१२) कुवार- कुवार (यक्ष) (वासु. ६७) खटा- झगड़ा, द्वेष (बुद्धि. ४८।२)
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