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देवीदास - विलास
पुष्पदंत सीतल श्रीअंस गुन घनेरे ।
वांसपूज विमल नंत धर्म जग ऊजेरे ।। प्रनमौ० ।। २ ।।
सांत कुंथ अरहु मल्ल मुनसोबत केरे ।
नमि निम पारस्यनाथ वीर धीर हेरे ।। प्रनमौ० ।। ३ ।।
लेत नाम अष्ट जाम छूटत बहुतेरे । ।
जनम पाय जादौराइ चरनन के चेरे । । ४ । । प्रनमौ० ।।
२. पदि
भाई तुम क्या हो बड़े-बड़े तन धारी ।
काय छोड़ दुरगति कौं पचे ।
तौं किस पर करों गुमान ।। टेक || भाई तुम ० । । १ ।
एक कोस पुन दो तीन कोस की काय धरी तह थित भारी ।
धनु पाँचसौतंग में हौ काल भकौ सब मद धारा री । । भाईतुम. ।। २ ।।
कोटि भट से जोधा लक भट सहस भट सत भट मारी ।
जम पर सब ही दीन भए हौ जग के
जोधा सब हारी । । भाई तुम. । । ३ । ।
३. पद'
देखे जिनराज आज राज रिद्धि पाई। यहु व्रष्ट महाइष्ट देव दुंदवी समस्त ।
सोन करै सोकसो अशोक तर बड़ाई । देखे ० । । १ । ।
सिंधासन झिलमिलात तीन छत्र सिर सुहात ।
भ्रमर फरहरात मनौ भक्ति अत बड़ाई । देखे ।।२।।
द्यानत बहु मंडलामइ दीसै परजाय ।
सातवानी तिहुकाल खिरै सुरनर सुखदाइ' । देखे । । ३ । ।
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१. यह पद कवि द्यानतरायकृत है।
२. द्यानत पद संग्रह (प्रकाशक, साहित्य शोध विभाग, महावीर जी, सन् १९६५ और द्यानत पद संग्रह (जिनवाणी प्रचारक कार्यालय, कलकत्ता) में इस पद की खोज की गई किन्तु वह उनमें अनुपलब्ध है | प्रतीत होता है कि देवीदास - विलास के लिपिकारं ने द्यानत कवि के इस पद की लोकप्रियता देखकर उसे अपनी प्रति में सुरक्षित कर लिया होगा ।
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