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९. ग्रन्थकार-प्रशस्ति-खण्ड
दोहा छन्द-भेद समझौ नहीं नहि सम्हारी पुनरुक्ति। लगनि लगी जिन-भक्ति सों रोकें ते सुन सक्ति।।१।। छयालिसठानैं की उकति अंक आर्गल देख। भाषा की भाषा करी पद्धति छन्द विशेष।।२।।
कुण्डलिया संवत् अष्टादस परै एक बीस को वास। सावन सुदि परिभास रवि धरा उगी दिन जास।। धरा उगी दिन जास ग्राम को नाम दिगौड़ो। जैनी-जन वसवास औड़छौ सौ पुर ठौढो।। सावन्तसिंह नरेस देस परजा सब थवंतु। जह निरभै कर रची यह सुपूजा धरि सवंतु।।३।।
कुण्डलिया गोलालारे जानियो वंश खरौआ होत। सोनवयार सुबैंक तसु पुनि कासिल्ल सुगौत्र।। पुनि कासिल्ल सुगौत्र सी कसिकहारा खेरौं। देस भदावर मांहि जो सुन रचौ तिनि भेरौ। कैलगमा के वसनहार सन्तोष सुभारे। देवीदास सुपुत्र दिगौड़ा गोलालारे।।४।।
कवित्त सेली के सहकारी भाई,। छिपुरी छगन ललितपुर लल्ले कारी।। कमल वसत मन भाये। टिहरी में मरजाद तथा पुनि, गंगाराम वसत तिन गाये।। देवीदास गुपाल दिगौड़े उदै कवित्त कला के आये। भाषाकरि जिनेश्वर पूजा छहौं वीर की आज्ञा पाये।।५।।
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