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देवीदास-विलास
वर्द्धमान जिन पूजिये।
प्राणी मनवचकाय लगायकै प्राणी फिर न मिलै इह वार हो।।६।। ॐ ह्रीं श्रीवर्द्धमानजिनचरणाग्रे क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यम्।
प्राणी गोपत केवलज्ञान को अन्धकार अज्ञान हो। जासु विनाशन कारणे, ले दीपक सुखदाय हो।। वर्धमान जिन पूजिये।
प्राणी मनवचकाय लगायकै प्राणी फिर न मिले इह वार हो।।७।। ॐ ह्रीं श्रीवर्द्धमानजिनचरणाग्रे मोहान्धकारविनाशनाय दीपम्।
प्राणी अष्टकर्म उरझावहिं यह जग में सर्वांग हो। जासु विनाशन कारणे खेवत धूप दशांग हो।। वर्द्धमान जिन पूजिये प्राणी
मनवचकाय लगाय कै, फिर न मिले इह वार हो।।८।। ॐ ह्रीं श्रीवर्द्धमानजिनचरणाग्रे अष्टकर्मदहानाय धूपम्।
प्राणी अन्तराय अरि आठमों अक्षय निधि खो देत हो। तासु विनाशन कारणे ले फल होहि सु चेत हो। बर्द्धमान जिन पूजिये,
प्राणी मनवचकाय लगायकै, फिर न मिले इह वार हो।।९।। ॐ ह्रीं श्रीवर्धमानजिनचरणाग्रे मोक्षफलप्राप्तये फलम्।
प्राणी चल चंदन चाँवर भले फूल सु रस नैवेद्य हो। दीप धूप फल आदि दे उर धर परम उमेद हो। वर्द्धमान जिन पूजिये प्राणी मनवचकाय लगायके,
फिर न मिले इह वार हो।।१०।। ॐ ह्रीं श्रीवर्द्धमानजिनचरणाग्रे अनर्घपदप्राप्तये अर्घम्।
गीतिका हम निरख जिन प्रतिबिम्ब पूजत त्रिविध कर गुण थापना। तिनके न कारज काज निज कल्याण हेतु सु आपना।। जैसे किसान करे जु खेती नाँहि नरपत कारणे।
अपनों सु निज परिवार पालन को सु कारज सारने।।११।। ॐ श्रीवर्धमानचरणाग्रे पूर्णायं निर्वपा. मीति स्वाहा।
(जाप्य १०८ वार मन्त्र - ॐ ह्रीं वर्द्धमानजिनाय नमः) ।
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