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चतुर्विशंतिजिन एवं अन्य पूजा-साहित्य-खण्ड (२५) श्री महावीर-जिनपूजा (२४) - लक्षण सिंह सुहावनो, तन तिनकों कर सात।
पीत-वरन महावीर प्रति, पूजौ भव्य प्रभात।।१।। ॐ ह्रीं श्रीमहावीरजिनचरणाग्रे पुष्पाञ्जलिं क्षिपामि।
____ अष्टक ढार देशी की प्राणी जन्म जरा मरणो महा, जो दुःख तीन प्रकार हो। जासु विनाशन कारणे, ले जल त्रय धार हो।। मनवचकाय लगाये के, फिर न मिले यह वार हो। वर्द्धमान जिन पूजिये, द्रव्य भाव विधि सार हो।। मनवचकाय लगाय के, फिर न मिलै यह वार हो।
वर्द्धमान जिनपूजिये।।२।। ॐ ह्रीं श्रीमहावीरजिनचरणाग्रे जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलम्।
मोह महा आताप को करत स्वभाव विसार हो। जासु विनाशन कारने लेकर चन्दन गारि हो।। वर्द्धमान जिनपूजिये.।. . .
प्राणी मनवचकाय लागायकै फिर न मिले यह वार हो।।३।। ॐ ह्रीं श्रीमहावीरजिनचरणाप्रै संसारतापविनाशनाय सुगन्धम्
प्राणी गमन चतुर्गति को जु है अति दीरघ दुःख प्रदाय हो। जासु विनाशन कारने उज्ज्वल अक्षत लाय हो।। वर्द्धमान जिनपूजिये।
प्राणी मनवचकाय लगायकै प्राणी फिर न मिलै यह वार हो।।४।। ॐ ह्रीं श्रीवर्द्धमानजिनचरणाग्रे अक्षयपदप्राप्तये अक्षतम्।
प्राणी दुःखदायक जग में नहीं और विरह सम तूल हो। जासु विनाशन कारणे, ले अति सुन्दर फूल हो। वर्द्धमान जिन पजिये।
प्राणी मनवचकाय लगाय के प्राणी फिर न मिलै इह वार हो।।५।। ॐ ह्रीं श्रीवर्द्धमानजिनचरणाग्रे कामवाणविनाशनाय पुष्पम्।
प्राणी भूख भयानक है बड़ी करत क्लेश अपार हो। जासु विनाशन कारणे ले नेवज भर थार हो।।
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