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प्रस्तावना
सावंतसिंह नरेस देस परजा सब थवंतु, जह निरभै करि रची यह सुपूजा धरि सवंतु। गोलालारे जानियो वंश खरौआ होतु । सोनवयार सु बैंक तसु पुनि कासिल्ल सुगोत्र । पुनि कासिल्ल सुगोत्र सिकसिकहारा खेरौ, देस भदावर माँहि जो सुन रचौ तिनि भेरौ । कैलगमा के वसनहार संतोस सुभारे,
देवीदास सुपुत्र दिगौड़ा गोलालारे ||
उक्त प्रशस्ति पद्य से यह तो स्पष्ट होता है कि उक्त चौवीसी पाठ की रचना कवि ने वि. सं. १८२१ के श्रावण शुक्ल रविवार के प्रभात काल में की थी. किन्तु उसके जन्म-समय के सम्बन्ध में किसी प्रकार का कोई उल्लेख अभी तक नहीं मिल सका है। हिन्दी साहित्य के इतिहास से भी उसके सम्बन्ध में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं मिलती और उत्तरवर्त्ती कवियों या लेखकों ने भी इस पर कोई प्रकाश नहीं
डाला ।
श्रद्धेय पं. नाथूराम जी प्रेमी (बम्बई) ने हिन्दी - जैन - साहित्य के इतिहास में उनका सर्वप्रथम संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत किया था, किन्तु उनके जन्म समय के सम्बन्ध में वे भी मौन रहे' । डाँ. कामता प्रसाद जी जैन ने पं. नाथूराम प्रेमी का अनुसरण करते हुए बतलाया कि कवि देवीदास दुगौडह गाँव (जिला झांसी) के रहने वाले थे और उन्होंने परमानन्द-विलास (सं. १८१२). प्रवचनसार - छन्दोबद्ध, चिद्विलास वचनिका एवं चौबीसी-प्राठ नामक कृतियों की रचना की थी। पं. परमानन्द शास्त्री ने भी अनेकान्त (पत्रिका) में उनकी रचनाओं का उल्लेख करते हुए, उनके जीवन की कुछ मार्मिक घटनाओं का उल्लेख तो किया, किन्तु जन्म- समय की कोई चर्चा नहीं की'। डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री ने भी उक्त सूचनाओं के आधार पर उनकी रचनाओं का उल्लेख मात्र किया है ।
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१. हिन्दी - जैन- साहित्य का इतिहास, पृ. ८०, नाथूराम प्रेमी, जैनग्रन्थ रत्नाकर, हीराबाग, बम्बई, सन् १९१७
२. हिन्दी जैन-साहित्य का संक्षिप्त इतिहास, पृ. २१८, डॉ. कामता प्रसाद जैन, भारतीय ज्ञानपीठ, काशी, सन् १९४७
३. अनेकान्त, अक्टूबर १९५२, पृ. २७३ - २८३.
४. हिन्दी जैन - साहित्य परिशीलन, भाग २, पृ. २१२
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