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देवीदास-विलास
गीतिका विधि पूर्व जो जिनविम्ब पूजत द्रव्य अरु पुनि भावसौं। अति पुण्य की तिनकै सुप्रापत होय दीरघ आवसौं।। जाके सुफल करि पुत्र धन-धान्यादि देह निरोगता। चक्रीसु-खग-धरनेन्द्र-इन्द्र सु होय निज सुख भोगता।।२४।।
इत्याशीर्वाद। (जाप्य १०८ वार - ॐ श्रीनेमिनाथाय नमः ) (२४) श्री पार्श्वनाथ-जिनपूजा (२३)
दोहा लक्षण उरग हरित वरण, तन उतंग नव हाथ।
मन-वच-तन कर पूजिये, सो प्रति पारसनाथ।।१।। ॐ ह्रीं श्रीपारसनाथ जिनचरणाग्रे पुष्पांजलिम् क्षिपामि।
गीतिका छन्द उपमान जासू, विमल वासू भाव शुभ गति लेवजू। ल्यायौ सुपूजन हेत पार्श्वनाथ उत्तम देवजू।। जुग उरग सुनि सुवचन भये धरणेन्द्र पुन पद्मावती।
तसु चरण पूजत क्यों न हो सुविभव वर मनभावती।।२।। ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनचरणाग्रे जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलम् निर्वपामीति स्वाहा।
अति सरस चन्दन दुख निकन्दन, करम-हार सुश्रेय जू।
ल्यायौ सु पूजन हेत, पार्श्वनाथ उत्तम देवजू।। जुग. ।।३।। ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनचरणाग्रे संसारतापविनाशनाय सुगन्धम् निर्वपामीति स्वाहा।
उज्ज्वल सु तन्दुल, सम सुचन्द बड़त दाम सुलेवजू।
ल्यायौ सु पूजन हेत, पार्श्वनाथ उत्तम देवजू।। जुग. ।।४।। ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनचरणाग्रे अक्षयपदप्राप्तये अक्षतम् निर्वपामीति स्वाहा।
छवि धवल फूल, गदूल आदिक, कर महा सुतवेर जू।
ल्यायौ सु पूजन हेतु पार्श्वनाथ उत्तम देवजू।। जुग.।।५।। ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजितचरणाग्रे कामवाणविध्वंशनाय पुष्पम् निर्वपामीति स्वाहा।
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