________________
३१०
देवीदास-विलास
इक्ष्वाकु-वंश उत्तम सुगोत, तिन कीनों जगमें यह उद्योत। फागुनवदि पाचें दिन अदोस, सम्मेदशिखर चढ़ि गमन मोख।।२७।।
सोरठा तीनलोक तसु ज्ञान विर्षे धरै ज्यों के सु त्यों।
सो जगमें सुखदान भये सिद्ध परमातमा।।२८।। ॐ ह्रीं श्रीमल्लिनाथजिनचरणाग्रेषु महायँ निर्वपामीति स्वाहा।
. गीतिका विधिपूर्व जो जिनबिम्ब पूजत द्रव्य अरु पुन भावसौं। अतिपुण्यकी तिनके सु प्रापत होय दीरघ आवसौं।। जाके सुफल करि पुत्र-धन-धान्यादि देह-निरोगता। चक्रीसु-खग-धरनेन्द्र-इन्द्र सु होय निज सुख भोगता।।२९।।
इत्याशीर्वाद (जाप्य १०८ बार - ॐ श्रीमल्लिनाथाय नमः) (२१) श्री मुनिसुव्रतनाथ-जिनपूजा (२०)
दोहा श्याम वरण शोभित सुतनु, कछवा लक्षण तास।
वीस धनुष उन्नत सुतन, मुनिसुव्रत प्रति जास।।१।। ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतजिन अत्र अवतर संवोषट इत्याह्वाननम्। ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतजिन अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ : ठ : स्थापनम्।
सत्रिधिकरणम्। ऊँ ही श्रीमुनिसोव्रतजिन अत्र मम सनिहतो भव भव वषट्।
अष्टक (सारंग छन्द) जिनवर आगम उक्ति सु छान सु प्रासुक पानी। उज्ज्वल परम अनूप महा शीतलसुखदानी।। जा सम देव न और तरनतारन पुनि दूजौ। थिर कर चित सु लै जिन मुनिसुव्रत प्रति पूजौ।।२।। ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतजिनचरणाग्रेषु जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलनिर्वपामीति स्वाहा।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org