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________________ चतुर्विशंतिजिन एवं अन्य पूजा-साहित्य-खण्ड ___३०१ अष्टक (राग धमार) उज्ज्वल मुनि-मन सम अतिशीतल गंगोदक सुखदाई। रतन-जड़त कंचनकी झारी अति शुचि करि भर लाई।। सरधानी होकर पजिए। सो श्री कुन्थनाथ पद पूजत हरत सकल दुःख दोष। जा प्रसाद उत्तमपद लहिये सहित अखिल सुख मोख।। सरधानी होकर पूजिए।।२।। ॐ ह्रीं श्रीकुन्थनाथजिनचरणाग्रेषु जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलम् निर्वपामीति स्वाहा। मलयागिरि चन्दन घसि केशर परम सुवास कपूर। प्राणी.सु लेकर जिन छवि देखो प्रणमत जाय हजूर।। सरधानी होकर पूजिये। श्रीकुन्थनाथ ।।३।। ॐ ह्रीं कुन्थनाथजिनचरणाग्रेषु संसारतापविनाशनाय चन्दनम् निर्वामीति स्वाहा चाँवर सलिल पखार ऊजरे सरस अखंडित वीन। प्राणी निरमल पुंज धरी तहँ जाके लक्षण लख प्रति चीन।। सरधानी होकर पूजिये। श्रीकुन्थनाथ ।।४।। ॐ ह्रीं श्रीकुन्थुनाथजिनचरणागेषु अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा। लेकर पुष्प बहुत भांतिनके सरस सुवासी फूल। जिन गुण गाय उतारहु जाका और न जिन सम तूल।। सरधानी होकर पूजिये। श्रीकुन्थनाथ ।।५।। ॐ ह्रीं श्रीकुन्थुनाथजिनचरणाग्रेषु कामबाणविध्वंसनाय पुष्पम् निर्वपामीति स्वाहा। व्यंजन विधि प्रकार सुहाये षटरसकरि संयुक्त। प्राणी-हाटिक थार करौं धरिनी के जिनवर आगम उक्त।। · सरधानी होकर पूजिये। श्रीकुन्थनाथ ।।६।। ॐ ह्रीं श्रीकुन्थनाथजिनचरणाग्रेषु क्षुधागविनाशनाय नैवेद्यम् निर्वपामीति स्वाहा। सनकरि घृत दीपक सुवरणके वाती सुमिल प्रजाल। सो लेकर सरनागत प्रभू के नित प्रति निज प्रतिपाल।। सरधानी होकर पूजिये। श्रीकुन्थनाथ ।।७।। ॐ ह्रीं श्रीकुन्थनाथजिनचरणाग्रेषु मोहान्धकारविनाशनाय दीपम् निर्वपामीति स्वाहा। कृस्नागरू आदिक सुवस्तुको जासु विर्षे खुशवोह Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003998
Book TitleDevidas Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavati Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1994
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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