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________________ देवीदास - विलास सो दुखनिवारन हेत दीपक ले विषै धर हाथ के । पूजौं सुरुचि कर चरण- अम्बुज निरख संभवनाथ के ।।७।। ॐ ह्रीं श्रीसंभवनाथजिनचरणाग्रे मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा । २५६ सो दर्व कर्म स्वभाव पुन नोकर्म आदि कौ उदौ । दुख देत मोह महा सु जासौं सहज निर्मल गुण मुदौ । । सौ दुखनिवारन हेत धूप लिये विषै धर हाथ के । पूजों सुरुचिकर चरण- अम्बुजं निरख संभवनाथ के । । ८ । ॐ ह्रीं श्रीसंभवनाथजिनचरणाग्रे अष्टकर्मदहनाय धूपम् निर्वपामीति स्वाहा । यह कर्म बहुत प्रकार अन्तर करन हार महाबली । दुख देत मोह सो सकल भाँतन विघन कर डारत भली । । सो दुख निवारन हेत फल ले यौं विषै धर हाथ के । पूजों सुरुचिकर चरण- अम्बुज निरख संभवनाथ के । । ९ । । ॐ ह्रीं श्रीसंभवनाथजिनचरणाग्रे मोक्षफलप्राप्ताय फलम् निर्वपामीति स्वाहा । वसु कर्म मोह लगे सदा के दुष्ट अपगुण को करें । आचरण सब हमरौ भुलायो क्यों सु भव- सागर तरैं । । सो दुखनिवारन हेत अर्घ लिये विषै धर हाथ के । . पूजों सुरूचिकर चरण-अम्बुज निरख संभवनाथ के । । १० ।। ॐ ह्रीं श्रीसंभवनाथजिनचरणाग्रे अनर्घपदप्राप्ताय अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा । गीतिका हम निरख जिनप्रतिबिम्ब पूजत त्रिविध कर गुण थापना । तिनके न कारज काज निज कल्याण हेत सु आपना । । जैसे किसान करै जु खेती नाँहि नरपति कारनै । अपनो सु निज परिवार पालन कौं सु कारज सारनै । । ११ । । ॐ ह्रीं श्रीसंभवनाथजिनाग्रे पूर्णार्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा । ( जाप्य १०८ बार - श्रीसंभवनाथजिनेन्द्राय नमः) जयमाल दोहा संभवनाथ सु तीसरे, हरण विषम जग जाल । मति माफिक तिनकी कहौं, भाषा कर जयमाल । । १२ ।। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003998
Book TitleDevidas Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavati Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1994
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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