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देवीदास - विलास
सो दुखनिवारन हेत दीपक ले विषै धर हाथ के ।
पूजौं सुरुचि कर चरण- अम्बुज निरख संभवनाथ के ।।७।।
ॐ ह्रीं श्रीसंभवनाथजिनचरणाग्रे मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा ।
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सो दर्व कर्म स्वभाव पुन नोकर्म आदि कौ उदौ ।
दुख देत मोह महा सु जासौं सहज निर्मल गुण मुदौ । । सौ दुखनिवारन हेत धूप लिये विषै धर हाथ के । पूजों सुरुचिकर चरण- अम्बुजं निरख संभवनाथ के । । ८ ।
ॐ ह्रीं श्रीसंभवनाथजिनचरणाग्रे अष्टकर्मदहनाय धूपम् निर्वपामीति स्वाहा ।
यह कर्म बहुत प्रकार अन्तर करन हार महाबली ।
दुख देत मोह सो सकल भाँतन विघन कर डारत भली । ।
सो दुख निवारन हेत फल ले यौं विषै धर हाथ के । पूजों सुरुचिकर चरण- अम्बुज निरख संभवनाथ के । । ९ । ।
ॐ ह्रीं श्रीसंभवनाथजिनचरणाग्रे मोक्षफलप्राप्ताय फलम् निर्वपामीति स्वाहा ।
वसु कर्म मोह लगे सदा के दुष्ट अपगुण को करें ।
आचरण सब हमरौ भुलायो क्यों सु भव- सागर तरैं । ।
सो दुखनिवारन हेत अर्घ लिये विषै धर हाथ के ।
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पूजों सुरूचिकर चरण-अम्बुज निरख संभवनाथ के । । १० ।।
ॐ ह्रीं श्रीसंभवनाथजिनचरणाग्रे अनर्घपदप्राप्ताय अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा ।
गीतिका
हम निरख जिनप्रतिबिम्ब पूजत त्रिविध कर गुण थापना । तिनके न कारज काज निज कल्याण हेत सु आपना । । जैसे किसान करै जु खेती नाँहि नरपति कारनै । अपनो सु निज परिवार पालन कौं सु कारज सारनै । । ११ । । ॐ ह्रीं श्रीसंभवनाथजिनाग्रे पूर्णार्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा ।
( जाप्य १०८ बार - श्रीसंभवनाथजिनेन्द्राय नमः)
जयमाल
दोहा संभवनाथ सु तीसरे, हरण विषम जग जाल । मति माफिक तिनकी कहौं, भाषा कर जयमाल । । १२ ।।
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