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चतुर्विशंतिजिन एवं अन्य पूजा - साहित्य - खण्ड गीतिका छन्द
मोह जन्मन मरण प्रेरत, करत अति साहस बड़ी ।
तिनकी सु भय भ्रामक न छूटत, विषम अति गति - गति खड़ी । । सो दुख निवारण हेत जल ल्यायौ विषै धर हाथ के ।
पूजौं सुरुचिकर चरण- अम्बुज निरख संभवनाथ के ।। २।।
ॐ ह्रीं श्रीसंभवनाथजिनचरणाग्रे जन्ममृत्युविनाशनाय जलम् निर्वपामीति स्वाहा।
अर मोह कर्म सु द्रोह करता ओट पर परणति छिप्यौ । हम पास त्रास करै सु मैं चिरदेत भव भाँवर तप्यौ । । सो दुखनिवारन हेत चन्दन ले विषै धर हाथ के । पूजों सुरुचिकर चरण- अम्बुज निरख संभवनाथ के ।। ३ ।।
ॐ ह्रीं श्रीसंभवनाथजिनचरणाग्रे संसारतापविनाशनाय चन्दनम् निर्वपामीति स्वाहा।
इन राग द्वेष निदान मेरो मलिन उर अन्तर करयौ ।
तिनने गरास करौ है मोकों समझ निज पर पद परयौ । ।
सो दुखनिवारन हेत अक्षत ले विषै धर हाथ के ।
पूजौं सुरुचिकर चरण- अम्बुज निरख संभवनाथ के ।।४।।
ॐ ह्रीं श्रीसंभवनाथजिनचरणाग्रे अक्षयपदप्राप्ताय अक्षतम् निर्वपामीति स्वाहा ।
यह मदनबाण कुचाल अति विकराल खलु पीरा करै । कबहूँ सुसंगत मिली ं मोंको परम सुख सम्पति हरै । । सो दुख निवारन फूल ले, चरणों विषै धर हाथ के पूजों सुरुचि कर चरण- अम्बुज निरख संभवनाथ के । । ५ । ।
ॐ ह्रीं श्रीसंभवनाथजिनचरणाग्रे कामबाणविध्वंशनाय पुष्पम् निर्वपामीति स्वाहा।
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जड़ क्षुधारोग अनादि ही कौ आय नित प्रेरत हमें ।
तिहिके सु. मारैं ही फिरत हैं जन्तु निसवासर भ्रमैं ।। सो दुखनिवारन हेत नेवज ले विषै धर हाथ के । पूजों सुरुचि कर चरण- अम्बुज निरख संभवनाथ के । । ६ । ।
ॐ ह्रीं श्रीसंभवनाथजिनचरणाग्रे क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
उर कुमति आदि लगी हमारैं महातम अज्ञानता ।
जाके उर्दै सब खबर भूली स्वपर पर नहिं जानता । ।
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