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८.चतुर्विशतिजिन एवं अन्य पूजा-साहित्य खण्ड
१. चतुर्विंशति जिनपूजा
दोहा
श्री आदिश्वर आदि जिन अन्तिम सु महावीर।
पूजौं भवसागर सुतर होत पार गम्भीर।।१।। ॐ हीं चतुर्विंशतिजनचरणाग्रेषु पुष्पाञ्जलिं क्षिपामि।
द्रुतविलम्वित छन्द परम पावन नीर सु छानिकै कनक भाजन में भर आनिके।
त्रिविध जोग सु उज्ज्वल हूजिये चतुर्वीशजिनेश्वर पूजिये।।२।। ॐहीं श्रीचतुर्विशतिजिनचरणाग्रेषु जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
अति सुगन्ध सुचन्दन गारिये विमल भाजन मांहि सुधारिये।
त्रिविध जोग सु उज्ज्वल हूजिये चतुर्वीश जिनेश्वर पूजिये।।३।। ॐहीं श्रीचतुर्विंशतिजिनचरणाग्रेषु संसारतापविनाशाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा।
सरस तन्दुल उज्ज्वल धोयके मलिनता सु निरन्तर खोयके।
त्रिविध जोग सु उज्ज्वल हूजिये चतुर्वीश जिनेश्वर पूजिये।।४।। ॐ ह्रीं श्रीचतुर्विंशतिजिनचरणाग्रेषु अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।
पहुप सुन्दर ले भर थार में भ्रमर झूम रहे झंकार में।
त्रिविध जोग सु उज्ज्वल हूजिये चतुर्वीश जिनेश्वर पूजिये।।५।। ॐहीं श्रीचतुर्विंशतिजिनचरणाग्रेषु कामवाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
उक्त आगम नेवज लीजिए वसन हस्त मलीन न छीजिये।
त्रिविध जोग सु उज्ज्वल हूजिये चतुर्वीश जिनेश्वर पूजिये।।६।। ॐ ह्रीं श्रीचतुर्विंशातिजिनचरणाग्रेषु क्षुधारोगविनाशाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
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