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देवीदास - विलास
औरनि देत सिखापन सूधौ परम सरस अति भारौ ।
आपुन काज निकट करि राखे दीवट तर अंधयारौ । । २ । । चेतनि. पर-परनति गति-गति अति भूले कहिवति कुटुम हमारौ । तिन्हि के काज उपाइ करत बहु चेतन नांहि संवारौ।।३।। चेतनि, तुम्हरहु पद तुमही कौं सोहत सो तुम क्यौं न विचारौ । राग दोष मद मोह विवर्जित आठ करम तैं न्यारौ । । ४ । । चेतनि. भूलि - भूलि औरनि सु पुकारत ए प्रभ जू मोहि तारौ । देवियदास तरौ करनी निज और न तारनं हारौ । । ५ । । चेतनि. (१२) राग ईमन
खबर किम भूले अहो मेरे भाई ।
देखौ प्रगट स्वरूप आपनौ अंतरदिष्टि जगाई । । १ । । खबरि राग दोष मद मोह तिन्हैं तुम धाइ लगे लपट्याई । तुम तै सरवंग निराले कूर प्रचुर दुखदाई | | परस्वारथ परमारथ मान्यौ गाह गही गहि आई।
ते
।। खबरि
मिथ्या तिमिर लग्यौ तुम्हरे दृग निज पर परखन पाई । । ३ । । खबरि
काल अनादि विषै रस गूते परम धरम विसराई ।
तुम तैं और नहीं पुनि भौंदू ब्याह माझ खरि खाई । । ४ । । खबरि लौगनि ठगत पगत पर जोगनि करत बहुत चतुराई । वेद-पुरान कहत समुझावत कारन रूप बड़ाई । । ५ ।। खबरि
तुम चतुरंगनि पुन चिनमूरति जड पुदगल परजाई । खोज लगाइ लखौ घट अंतर खौजनहार सु ताई । । ६ । । खबरि
इह विधि सौं मन कीधु करौ कौ बार - बार समुझाई। देवियदास कहत तुम चाहत जौ चिरकाल निकाई । । ७ ।। खबरि (१३) राग धनासिरी
तुम अपनो पद भूले चेतनि तुम अपनौ पद भूले |
विचलत ज्यौं नर माधिकता करि घर तजि लोटत घूले । । १ । । चेतनि.
नित्य निगोद अनादिउ तन तैं निकसि भए अध खूलें।
चारि गतैं गढि बेढि पलिकियनि कर्म हिंडोरा झूले । । २ । । चेतनि.
ऊ भटका जसि ताव पाइ ले मारग सनमुख लूले ।
निज द्रग करि निज धन न विलोकत देखि विभौ पर फूले । । ३ । । चेतनि,
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